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अनेकान्त-57/3-4
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योगीश्वरों को प्राप्त होता है, जो ज्ञान की पराकाष्ठा है, जो केवलज्ञान के नाम से प्रसिद्ध है 29। जिसके प्राप्त होने पर आत्मा सर्वज्ञ, सर्वानुभू ० सर्ववित् कहलाता है।"
प्रत्येक मनुष्य अपनी वर्तमान अविकसित दशा में इस केवलज्ञान का पात्र नही है। केवलज्ञान तो दूर रहा, साधारणतया अधिकांश मनुष्य तो सत्य को देखते हुए भी इसे नहीं देख पाते और सुनते हुए भी उसे नहीं सुन पाते", अतः जो सत्य का लब्धा, ज्ञाता और वक्ता है वह निःसन्देह बहुत ही कुशल और आश्चर्यकारी व्यक्ति है । श्रद्धामार्ग का कारण भी उपर्युक्त आप्तत्व ही है- यही कारण है कि सब ही धर्मपन्थनेताओं ने साधारण जनता के लिये, जो अल्पज्ञान के कारण बच्चों के समान है अन्तःअनुभवी ऋषि और महापुरुषों के अनुभवों, मन्तव्यों और वाक्यों को ईश्वरीय ज्ञान ठहराकर-आप्तवचन कहकर-उन पर श्रद्धा, विश्वास और ईमान लाने के लिये बहुत जोर दिया है। इस श्रद्धापूर्वक ही जीवन-निर्वाह करने को श्रेयस्कर बतलाया है। प्रत्येक धार्मिक सम्प्रदाय का बतलाया हुआ मार्ग, उसके बतलाये हुए सिद्धान्तों पर श्रद्धा करने से प्रारम्भ होता है। वाच्य और उसके अनेक वाच्य- यह सत्य के बहुविध अनुभव की ही महिमा है कि सत्य का बहुविध-साधनों, बहुविध संज्ञाओं और बहुविध-शैली से सदा प्रदर्शन किया जाता रहा है। इसी के प्रदर्शन के लिये शब्द, स्थापना, द्रव्य, भाव आदि साधनों से काम लिया जाता है। इस ही वाच्य के अनेक वाचक शब्द प्रसिद्ध हैं। उस ही के सुगम बोध के लिये आलंकारिक और तार्किक शैली प्रचलित है।
किसी वस्तु के वाचक जितने शब्द आज उपयोग में आ रहे हैं। उन सबके वाच्य अनुभव एक दूसरे से भिन्न हैं, परन्तु एक दूसरे के विरोधी नहीं हैं। वे एक ही वस्तु की भिन्न भिन्न पर्यायों के वाचक हैं और इसीलिये उनका नाम पर्यायवाची शब्द (Synonym) है। यह बात दूसरी है कि अज्ञानता के कारण आज उन सब शब्दों को हम बिना उनकी विशेषता समझे एक ही अर्थ में