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________________ अनेकान्त-57/3-4 बहुरूपात्मक सत्ता है इसका अन्दाजा उन विभिन्न विज्ञानों को ध्यान में लाने से हो सकता है जो 'मनुष्य' के अध्ययन के आधार पर बने हैं। जैसे :शारीरिक-रचनाविज्ञान (Anatomy), शारीरिक व्यापार विज्ञान (Physiology), गर्भविज्ञान (Emibryology), भाषा-विज्ञान (Phiology), मनोविज्ञान (Psychology), सामाजिक जीवन-विज्ञान (Sociology), जातिविज्ञान (Ethnology), मानव विर्वतविज्ञान (Anthropology), आदि। इनमें प्रत्येक विज्ञान अपने अपने क्षेत्र में बहुत उपयोगी और सत्य है । परन्तु कोई भी विज्ञान पूर्णसत्य नहीं है, क्योंकि 'मनुष्य' न केवल गर्भस्थ वस्तु है - न केवल सप्तधातु-उपधातु-निर्मित अङ्गोपाङ्ग वाला एक विशेष आकृति का स्थूल पदार्थ है - न केवल श्वासोच्छवास लेता हुआ चलता-फिरता यन्त्र है- न केवल भाषाभाषी है... वह उपर्युक्त सब कुछ होता हुआ भी इनसे बहुत ज्यादा है। इसलिये प्रत्येक मनुष्य सम्बन्धी विज्ञान उस दृष्टि की अपेक्षा जिससे कि 'मनुष्य' का अध्ययन किया गया है- उस प्रयोजन की अपेक्षा जिसकी पूर्ति के लिये विज्ञान का निर्माण हुआ है, सत्य है और इसलिये उपयोगी है; परन्तु अन्यदृष्टियों, अन्यप्रयोजनों की अपेक्षा और सम्पूर्णसत्य की अपेक्षा वही विज्ञान निरर्थक है । अतः यदि उपर्युक्त विज्ञानों में से किसी एक विज्ञान को सम्पूर्ण मनुष्य विज्ञान मान लिया जाए तो वह हमारी धारणा मिथ्या होगी । अतः हमारा ज्ञानगम्य, व्यवहारगम्य सत्य एकांशिक सत्य, सापेक्ष सत्य है । वह अपनी विवक्षित दृष्टि और प्रयोजन की अपेक्षा सतय है । यदि उसे अन्यदृष्टि और अन्यप्रयोजन की कसौटी से देखा जाय या यदि उसे पूर्णसत्य मान लिया जाय तो वह निरर्थक, अनुपयोगी और मिथ्या होगा " । सन्दर्भ 1. द्रव्य, वस्तु, अर्थ, सामान्य, सत्ता, तत्त्व आदि सत्य के ही एकार्थवाची नाम है। - पञ्चाध्यायी I-143 2. 119 3. (अ) Haeckle- Riddle of the universe P32 (आ) Loar Averburg The origin of civilization 1912P 242-245 (इ) A A Macdonel - Vedic Mythology P 1 Das Gupta-A History of Indian Philosophy 1922, P 439
SR No.538057
Book TitleAnekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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