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________________ अनेकान्त-57/1-2 19 मार्ग। सभी जीवात्माएँ स्वभाव से त्रिकाल शुद्ध हैं ऐसी शुद्धात्मा के ज्ञान पूर्वक उसका अनुभव करना ज्ञानानुभूति कहलाती है। इस अनुभूति के साथ आत्मा की जो प्रतीति और ज्ञान होता है उसे क्रमशः सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान कहते हैं। आत्मा की मोह-राग-द्वेष के अभाव रूप जो शुद्धता के अंशों में वृद्धि होती है वह वीतराग रूप परिणति सम्यक चारित्र कहलाती है। सम्पूर्ण वीतरागता यथाख्यात चारित्र कहलाता है जो शुद्धोपयोग रूप आत्मध्यान से होता है। वीतरागता की प्राप्ति के साथ ही आत्मा के अंनतज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य आदि गुण प्रकट होकर वह सर्व ज्ञाता-सर्वे दृष्टा हो जाता है। इस प्रकार संसार - अवस्था में देह रूपी मंदिर में विराजमान कारण परमात्मा स्वरूप पारिणामिक ज्ञायक भाव रूप परमात्मा का पदार्थो के ज्ञान, स्व-पर भेद-विज्ञान, आत्मस्वभाव में अहंबुद्धि एवं आत्म-रुचि पूर्वक अपनी ज्ञायक आत्मा का अनुभव कर उसमें आत्म-प्रतीति या अपनापन स्थापित करना सम्यग्दर्शन कहलाता है। यह आप्त, आगम और पदार्थो के प्रति श्रद्धान-ज्ञान पूर्वक होता है। सम्यग्दर्शन की आराधना करने वाले नियम से ज्ञान की आराधना करते हैं, परन्तु ज्ञानाराधना करने वाले को दर्शन की आराधना हो भी या न भी हो। ज्ञान ज्ञान ही है वह मिथ्या या सम्यक नहीं होता। मिथ्यात्व-तत्त्वों के प्रति अयथार्थ श्रद्धान एवं आत्मानुभव के अभाव के कारण-ऐसा ज्ञान मिथ्याज्ञान कहलाता है और सम्यग्दर्शन के साथ ज्ञान भी सम्यग्ज्ञान कहलाता है। आत्मज्ञान के अभाव में आगमज्ञान भी अकिञ्चित्कर है। श्रुताभ्यास के मंथन का उद्देश्य शुद्धात्म स्वरूप का अनुभव या संवित्ति की प्राप्ति है, अन्य सब शात्राभ्यास मनीषियों का बुद्धि-कौशल रूप निःसार है। शुद्धात्म लक्षित श्रुताभ्यास एवं तत्व-चिंतन ही परम तप कहा है उससे राग रहित शुद्धात्मा का अनुभव होता है। इस दृष्टि से सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान दीपक-प्रकाश समान सहगामी हैं। आत्मा स्वभावतः त्रिकाल शुद्ध, ज्ञान-दर्शन युक्त, अरूपी एक है। परमाणु मात्र भी पर द्रव्य (द्रव्यकर्म, भावकर्म और नोकम) उसके नहीं हैं। आत्मा प्रमत्त या अप्रमत्त भी नहीं है। वह तो मात्र ज्ञायक ही है। वस्तुतः वह
SR No.538057
Book TitleAnekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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