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________________ अनेकान्त-57/1-2 तो मात्र है-ज्ञायक भी व्यवहार कथन है। ऐसा परिणामी आत्मा जब जिस भाव रूप से परिणमन करता है, उस समय उस भाव ‘मय कहा जाता है। इस दृष्टि से धर्म परिणत-आत्मा को धर्म कहा जाता है। चारित्र परिणत आत्मा स्वयं मोह-क्षोभ रहित चारित्रमय है। इसी न्याय से शुभ या अशुभ भाव रूप परिणत आत्मा शुभ या अशुभ है (प्र. सार 7-8-9)। धर्म से परिणमित स्वरूप वाला आत्मा शुद्ध उपयोग होने पर मोक्ष सुख व शुभोपयोग वाला स्वर्ग सुख पाता है और अशुभोपयोग वाला कुमनुष्य, तिर्यंच एवं नरक के दुःख भोगता हुआ संसार भ्रमण करता है (प्र.सार-11-12)। आत्मशुद्धि, अतीन्द्रिय ज्ञान और अतीन्द्रिय सुख की प्राप्ति का मार्ग हैअतीन्द्रिय आत्मा का अनुभव एवं आत्म-प्रतीति, आत्मज्ञान और आत्म स्वरूप में रमणता। इसे ही त्रिरत्न रूप सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की एकता रूप मुक्ति-पथ कहा है। आगम में इसका निरूपण दो प्रकार से किया है-पहला साधन या कारण रूप से और दूसरा साध्य या कार्य रूप से। इसे क्रमशः व्यवहार और निश्चय मोक्ष मार्ग कहते हैं। इसमें रत्नत्रय रूप शुद्ध-स्वात्मा या अंतरात्मा ही यथार्थ मोक्षमार्ग है, वही आत्मार्थीओं के लिये अभिलाषणीय और दर्शनीय है। शुद्ध सच्चिदानन्दमय स्वात्मा (अंतरात्मा) के प्रति तद्रूप प्रतीति, अनुभूति और स्थिति में अभिमुखता व्यवहार सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र है और उस शुद्धात्मा की प्रतीति, अनुभूति तथा स्थिति में उपयोग की प्रवृत्ति निश्चय सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र है (पं. आशाधर जी-अध्यात्मरहस्य श्लोक 15)। तत्वज्ञान पूर्वक शुद्ध स्वात्मा का अनुभव कर उसमें लीन होने से त्रिरत्नमय गुणों का उच्च विकास होता है, उसे ही ज्ञानानुभूति एवं शुद्धोपयोग कहते हैं। यह ध्यातव्य है कि कारण अनुसार कार्य होने के न्याय से त्रिकाली शुद्ध ज्ञायक आत्मा की विद्यमान विभाव परिणति का कारण आत्मा की अज्ञान मूलक प्रवृत्ति है। क्योंकि अज्ञानमय भाव से अज्ञानमय भाव की उत्पत्ति होती है जो अनंत दुख रूप है। आचार्य कुन्दकुन्द के अनुसार जीवों को तत्व का अज्ञान अज्ञान का उदय है, तत्त्व का अश्रद्धान मिथ्यात्व का उदय है; अविरमण भाव असंयम का उदय है; जीव के जो मलिन उपयोग है वह कषाय का उदय
SR No.538057
Book TitleAnekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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