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________________ पदार्थों के परिज्ञान द्वारा आत्मानुभूति की प्रक्रिया ' -डॉ. राजेन्द्र कुमार बंसल जिनेन्द्र देव के मतानुसार ज्ञान आत्मा है। आत्मा के बिना ज्ञान नहीं होता इसलिये ज्ञान आत्मा है और आत्मा (ज्ञान गुण द्वारा) ज्ञान है एवं सुखादि अन्य गुण द्वारा अन्य है। आत्मा ज्ञान स्वभाव है और पदार्थ आत्मा के ज्ञेय स्वरूप हैं। रूपी-नेत्र जेय के समान ज्ञेय और आत्मा एक दूसरे में प्रवर्तन नहीं करते (प्रसार 27/28) जो जानता है सो ज्ञान है अर्थात् ज्ञायक ही ज्ञान है (प्र. सा. 35)। पदार्थ सम्बन्धी ज्ञान और सुख अमूर्त या मूर्त अथवा अतीन्द्रिय या ऐन्द्रिय होता है। इनमें अतीन्द्रिय ज्ञान और अतीन्द्रिय सुख उपादेय है तथा इन्द्रिय ज्ञान और इन्द्रिय सुख हेय है। ज्ञान स्व-पर प्रकाशक है (प्र. सार 53/54)। 'केवलज्ञान' है वह सुख है, परिणाम भी वही है, घातियाकर्म के क्षय से खेद रहित है। जिनके घातिया कर्म नष्ट हो गये हैं उनका सुख ही परम सुख है, ऐसा वचन सुनकर जो श्रद्धा नहीं करते वे अभव्य हैं (प्र. सार 60/61)! जिस प्रकार आकाश में सूर्य अपने आप ही तेज, उष्ण और देव है उसी प्रकार लोक में सिद्ध भगवान भी स्वयमेव ज्ञान, सुख और देव हैं (प्र.सार. 68)! तिमिर नाशक दृष्टि वाले को दीपक प्रयोजन हीन होता है उसी प्रकार स्वयमेव सुख स्वरूप परिणमित होने वाले आत्मा को विषय-सुख अकिंचित्कर है (प्र. सा.67)। द्रव्य, तत्त्व और पदार्थों के यथार्थ ज्ञान के अभाव के कारण आत्मा अनादिकाल से आत्मविस्मृति एवं पर-पदार्थों में इष्ट-अनिष्ट बुद्धि रूप त्रिदोष-अविद्या के कारण चतुःगतियों में भ्रमण कर रहा है पर द्रव्यों के प्रति एकत्व-ममत्व, कर्तृत्व-भोक्तृत्व बुद्धि एवं एकान्तिक-आग्रही सोच के रूप में जीवन को आत्म-स्वभाव के विपरीत दिशा में संचालित कर रहा है। स्थायी आत्म शांति, अनाकुल सुख एवं स्व-समय प्रवृत्ति हेतु वह प्रयासरत है। इसका मार्ग है-सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र रूप की एकता रूप मोक्ष
SR No.538057
Book TitleAnekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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