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________________ अनेकान्त-57/1-2 वाक्यानि चास्य शास्त्रस्य कर्तृणि न पुनर्वयम्।। त. सा स्वशक्ति ससूतिचवस्तुतत्त्वैर्व्याख्या कृतेय समयस्य शब्दैः। स्वरूप गुप्तस्य न किञ्चिदस्ति कर्तव्यमेवामृत चन्द्रसूरे ।। स सा व्याख्येय किल विश्वमात्मसहित व्याख्यातु गुम्फे गिरा। व्याख्यातामृतचन्द्रसूरिरिति मा मोहाजनो वलगतु । वलगात्वद्य विशुद्धबोधिकलया स्याद्वाद विद्याबलात्। लब्धैक सकलात्मशाश्वतमिद स्व तत्त्वमव्याकुल ।। प्र सार + लघुतत्त्वस्फोट 2/2 5 भावो भवन भासि हि भाव एव चितामवशिचन्मय एव भासि। भावो न वा भासि चिदेव भासि न वा विभो भास्पसि चिच्चिदेक ।। 24/10 लघुतत्त्वस्फोट त प्रत्यक्षमुत्तिष्ठति निष्ठुरेय स्याद्वादमुद्रा हठकारतस्ते। ___ अनेकश शब्दपथोपनीत सस्कृत्य विश्व सममस्खलन्ती।। 18/8 लघुतत्त्वस्फोट 7 लघुतत्त्वस्फोट 1/17 8(क)अनन्तधर्मणस्तत्त्व पश्यन्ती प्रत्यगात्मन । अनेकान्तमपीमूर्ति नित्यमेव प्रकाशताम् ।। समयसार (ख) दुर्निवारनयानीक विरोधध्वसनौषधि। स्यात्कार जीविता जीयाज्जैनी सिद्धान्त पद्धति ।। पञ्चस्तिकाय (ग) परमागमम्य जीवं निषिद्ध जात्यन्धसिन्धुरविधानम्। सकलनय विलसितना विरोधमथन नयाम्यनेकान्तम्।। पुरुषार्थ ) घटमोलिसुवार्णर्थी नाशोत्पत्ति स्थितिष्वयम्। शोक प्रमोदमाध्यस्थ्य जनोयाति सहेतुकम्।। 10 लघुतत्त्वस्फोट 13 सो 5/19 11 वही 12 से 15/20 12 वही 20वी स्तुति 13 लघुतत्त्वस्फोट 24वी स्तुति एवं 25वी स्तुति - आचार्य-संस्कृत विभाग दिगम्बर जैन कॉलेज, बड़ौत
SR No.538057
Book TitleAnekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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