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________________ 36 अनेकान्त-57/3-4 "Without the Pahari Painters, the Pahari states and their rules might wall have been forgotton; without the Pahari rajas, the Painters would certainly have been forgotton." पहाड़ी चित्रकला को सहजता एवं ताजगी में समकालीन मुगल शैली के और काव्यात्मक गुण में राजस्थानी कला के रूप में पहचाना जा सकता है। वह क्या है जो पहाड़ी कला को इतना आकर्षित बनाती है? उसके काव्यात्मक विषय या उसकी आकर्षित रंग योजना या सुन्दर रेखांकन या उसके भावपूर्ण चेहरे? इनमें से मात्र एक नहीं बल्कि समस्त विशेषताएं एक साथ हमें पहाड़ी कलम की समस्त शैलियों में दिखायी देती हैं। प्रायः यह कहा जाता है कि पहाड़ी चित्रकला अपने चरित्र में धार्मिक है। यह बात कुछ सीमा तक सही है। पहाड़ी कलम की विभिन्न शैलियों जैसे-कांगड़ा, बसौहली, गढ़वाल, गुलेर, चम्बा, मण्डी, कुल्लू, नूरपुर आदि के चित्रकारों के पास विषय सामग्री पहले से ही उपलब्ध थी। राजस्थानी चित्रकारों द्वारा अनेक संस्कृत ग्रन्थों जैसे-रामायण, महाभारत, भागवत पुराण, मारकण्डेय पुराण, रसमंजरा आदि के उदाहरणों के ही पुनर्व्याख्या पहाड़ी चित्रकला की विभिन्न शैलियों में की गई। धार्मिक विषयों के साथ-साथ प्रेम भी विभिन्न पहाड़ी शैलियों में प्रमुख विषय बन गया था। यह सर्वप्रथम आनन्द कुमार स्वामी ने स्पष्ट किया। वे स्वीकार करते हैं : "उनकी विशिष्टता अद्वितीय है; जो स्थान भू-दृश्य कला में चीनियों को प्राप्त है, यहाँ वही स्थान मानवीय प्रेम को प्राप्त है।" डब्ल्यू. जी. आर्चर के अनुसार : "Exquisite rendering of the subtle ectasies of romance are seen only in the pictures from the Punjab Hills.". प्रेमपूर्ण विषयों को चारित्रिक रूप से चित्रित करने में चित्रकारों ने
SR No.538057
Book TitleAnekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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