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"पहाड़ी लघु चित्रशैलियों में शिव-परिवार विषयक चित्र"
-कु. रूपा जैन, शोधछात्रा __ पहाड़ी चित्रकला के जन्म की कहानी ज्ञात नहीं है, हम नहीं जानते कब और कहाँ चित्रकला के क्षेत्र में इस कला ने अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया? आनन्द कुमार स्वामी प्रथम विद्वान् थे जिन्होंने लगभग 8 दशक पूर्व इस कला के प्रति संसार का ध्यान आकर्षित किया और इन्हीं कालों के दौरान साहित्यिक विकास हुआ। विभिन्न विद्वानों के इस सम्बन्ध में, विशेषतौर पर पहाड़ी चित्रकला के प्रारम्भ से सम्बन्धित अनेक मत होने के कारण इसके जन्म की कहानी अनिश्चित बनी हुई है। पहाड़ी चित्रकला से सम्बन्धित प्रामाणिक तथ्य शोचनीय रूप से अत्यन्त अल्प हैं एवं जो थोड़े बहुत उपलब्ध हैं, वे भी स्पष्ट नहीं हैं।
पहाड़ी चित्रकला के प्रचार-प्रसार के लिए बहुत सी परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं। समकालीन काव्य दो विषयों के रूप में स्वीकार किया गया-इसका प्रथम रूप या तो पूर्ण रूप से ईश्वर के पूर्णत्व की ओर केन्द्रित था या शृंगारिक प्रेम से सम्बन्धित था। चित्र इन दोनों विषयों का मिश्रण थे और उनके बीच की विभाजन रेखा अत्यन्त सूक्ष्म थी। चित्र पूर्णतः कर्तव्यनिष्ठा एवं तीव्र लगन के प्रमाण थे जिनका चित्रण विषयों को अनुभव किये बिना या समझे बिना नहीं किया जा सकता। राजा सामान्य जनता के मनोरंजन के लिए सभी प्रकार के बाहरी सांस्कृतिक कार्यों में जैसे-नृत्य, संगीत, नाटक आदि अनेक कार्य, जो सामान्य जनता के आनन्द हेतु थे, अपना पूर्ण योगदान देते थे। चित्रकार सूक्ष्मता पूर्वक उन अवसरों को अपने कार्य से कैद कर लेते थे। आइजाजुद्दीन ने पहाड़ी चित्रकला के विषय में सूक्ष्मतापूर्वक अध्ययन किया एवं चित्रकारों की उपलब्धि और संरक्षकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका का वर्णन किया। वे लिखते हैं