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अनेकान्त-57/3-4
5. शब्द नय : शब्दनय के अन्तर्गत अष्टम प्रस्थान उभयनियम तथा नवम प्रस्थान नियम आते हैं। आचार्य अष्टम नय के अन्तर्गत बौद्धाचार्य दिङ्नाग के मत का प्रतिपादन करते हैं। तथा नवम आरे में अवक्तव्यत्व मत का प्रतिपादन किया है।16 6. समभिरूढ़ नय : समभिरूढ़नय के अन्तर्गत दशम प्रस्थान नियमविधि नय आता है जिसमें संभवतः आचार्य ने बौद्धधर्म के ही एक मत का प्रतिपादन किया है। 7. एवंभूत नय : एवंभूत नय के अन्तर्गत एकादश-नियमोभय प्रस्थान तथा द्वादश नियम को लिया गया है। एकादश नय के अन्तर्गत क्षणिकवाद का तथा द्वादशनय के अन्तर्गत शून्यवाद का प्रतिपादन किया गया है। मल्लवादी के विवेचन की मौलिकता - इस प्रकार हम देखते है कि मल्लवादी ने तत्कालीन भारतीय दर्शनों को नय में समाहित करने का प्रयास किया। प्रस्तुत निबन्ध में परवर्ती जैन दार्शनिकों के मतानुसार हमने सातों नयों में विभिन्न दर्शनों का समावेश किया है। आचार्य मल्लवादी ने भी जैनाचार्यों के मतानुसार लिया है। जैसे-नैगम नय के अन्तर्गत परवर्ती दार्शनिकों ने वैशेषिक दर्शन को लिया, मल्लवादी भी नैगम नय के अन्तर्गत पांचवें और छठवें आरे को दर्शाते हुए छठवें आरे में तो वैशेषिक दर्शन को ले लेते हैं, किन्तु पांचवें आरे में वे वैयाकरण दर्शन को लेते हैं। यह मल्लवादी की अपनी विशेषता है। नैगम नय के अन्तर्गत वैयाकरण दर्शन को लेने की बात पूर्ववर्ती और परवर्ती किन्हीं भी आचार्यों ने नही कही। दूसरे संग्रह नय के अन्तर्गत परवर्ती आचार्यो ने सांख्य, ब्रह्मवाद और समस्त अद्वैतवादों को लिया। मल्लवादी ने द्वितीय, तृतीय तथा चतुर्थ आरे को संग्रहनय के अन्तर्गत लिया तथा अद्वैतवाद, सांख्य, ईश्वरवाद और ब्रह्मवाद का समावेश किया। यहां मल्लवादी ने सभी के अतिरिक्त ईश्वरवाद को भी रखा। व्यवहार नय के अन्तर्गत परवर्ती सभी दार्शनिकों ने मात्र चार्वाक को लिया है। मल्लवादी ने प्रथम आरे में उसकी स्थापना करके लौकिक पुरुष (जिसे हम चार्वाक कह सकते हैं) के अतिरिक्त अज्ञानवाद तथा पूर्व-मीमांसक को भी लिया है। इन दर्शनों को पूर्ववर्ती तथा