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________________ अनेकान्त-57/3-4 दार्शनिक प्रस्थान उसके विपरीत नय की दृष्टि को मान्यता देने वाले दूसरे दार्शनिक प्रस्थान के द्वारा खंडित कर दिया गया। परिणाम यह निकला कि कोई भी दार्शनिक प्रस्थान अपने विरोधी दार्शनिक प्रस्थान के सामने न टिक पाने के कारण सिद्धान्त रूप में स्थापित न हो सका और सभी दार्शनिक प्रस्थान एक दूसरे की अपेक्षा पूर्वपक्ष ही बन कर रह गये। ऐसी स्थिति में यह प्रश्न उपस्थित हुआ कि आखिर सिद्धान्तपक्ष है क्या? इस प्रश्न का उत्तर ध्वनित हुआ कि सिद्धान्त पक्ष वह है जो सभी नयों को, भले ही वे परस्पर विरोधी भी क्यों न हो, अपनी-अपनी अपेक्षा से मान्यता प्रदान करें और किसी एक नय के प्रति ऐसा पक्षपातपूर्ण दुराग्रह न रखें कि दूसरे नयों का अपलाप करना पड़े क्योंकि जैनदर्शन वही करता है इसलिए जैन दर्शन ही सिद्धान्त पक्ष बन जायेगा। जैन दर्शन को सिद्धान्तपक्ष के रूप में और सभी जैनेतर दर्शनों को पूर्वपक्ष के रूप में प्रस्तुत करने का यह प्रकार आचार्य मल्लवादी का अपना मौलिक है जिसका उपयोग उनके पहले वाले या बाद वाले किसी जैन आचार्य ने अब तक नहीं किया। इस संदर्भ में दलसुख मालवणिया का कथन है कि -'नयचक्र में जैनेतर मतों को ही नय के रूप में वर्णित किया गया है और उन मतों के उत्तरपक्ष, जो कि स्वयं भी एक जैनेतर पक्ष ही होते हैं-उनके द्वारा भी पूर्वपक्ष का मात्र खण्डन ही नहीं, किन्तु पूर्वपक्ष में जो गुण है उनके स्वीकार की ओर निर्देश भी किया गया है। इस प्रकार उत्तरोत्तर जैनेतर मतों को ही नय मानकर समग्र ग्रन्थ की रचना हुई है। यहाँ जैनेतर मत जो लोक में प्रचलित है उन्हीं को नय मानकर उनका संग्रह विविध नयों के रूप में किया गया है और किस प्रकार जैन दर्शन सर्वनयमय है यह सिद्ध किया गया है। सिद्धसेन दिवाकर ने प्रसिद्ध सात नयों को ही दो मूल नयों में समाविष्ट किया है, किन्तु मल्लवादी ने नय विचार को एक नयचक्र का रूप दिया और चक्र की कल्पना के अनुरूप नयों का ऐसा वर्गीकरण किया है जो अन्यत्र देखने को नहीं मिलता। चक्र के बारह आरे होते हैं। मल्लवादी ने सात नयों में बारह दार्शनिक प्रस्थानों का समावेश किया, वे दार्शनिक प्रस्थान ये हैं :1. विधिः, 2. विधि-विधिः, 3. विध्युभयम्, 4. विधिनियमः, 5. विधिनियमौ,
SR No.538057
Book TitleAnekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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