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आचार्य मल्लवादी का नय विषयक चिन्तन
___-डॉ. अनेकान्त कुमार जैन
आचार्य मल्लवादी जैन परम्परा में एक क्रान्तिकारी विद्वान आचार्य हुये हैं। जैन दर्शन के चिन्तन के विकास में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। उनकी प्रतिष्ठा एक गूढ़ जैन दार्शनिक के रूप में है। ___ आचार्य मल्लवादी ने नयों का विश्लेषण द्वादशार नयचक्र में एक अलग ही तरीके से किया है। मल्लवादी जैसी शैली इनसे पूर्ववर्ती आचार्यों में कम ही दिखती है, इसलिए मल्लवादी पूर्णतः मौलिक हैं। मल्लवादी के परवर्ती आचार्यों ने भी इस प्रकार की शैली का अनुसरण नहीं किया। मल्लवादी का समय विक्रम की 402 से लेकर विक्रम 482 तक निर्धारित किया गया है। मल्लवादी और आचार्य सिद्धसेन को समकालीन भी माना जाता है।
आचार्य मल्लवादी का द्वादशार नयचक्र जैनेतर दर्शनों का समावेश की दृष्टि से विशेष महत्व का है, क्योंकि यह पूरा का पूरा ग्रन्थ सात नयों के बीच ही समस्त दार्शनिकों का समावेश प्रदर्शित करने के लिए लिखा गया है। अन्य जैनाचार्यों ने नयों में विभिन्न दर्शनों के समाविष्ट होने की चर्चा आनुसंगिक रूप में तो की है किन्तु इस विषय को ही अपना मुख्य विषय बनाकर विवेचन करने वाला अकेला द्वादशार नयचक्र ही है। ____एक अपेक्षा से एक नय एक वक्तव्य देता है तो दूसरी अपेक्षा से दूसरा नय दूसरा वक्तव्य देता है जो पहले वक्तव्य का विरोधी वक्तव्य होता है अतः एक नय से दूसरा नय कट जाता है। इस स्थिति का लाभ उठाते हुए आचार्य मल्लवादी ने विभिन्न दार्शनिक प्रस्थानों को एक बारह अरों वाले चक्र के रूप में इस तरह प्रस्तुत किया कि एक नय की दृष्टि को मान्यता देने वाला