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________________ अनेकान्त - 57/3-4 11 परिणत होता चला गया, और इन सभी रूपान्तरों में मात्र एक निश्चलता अपनी स्वयं की भूमिका अति रहस्यमय रूप में निभाती चली गई। वहीं शृंखलाबद्ध शक्तियां भी मौन हुई रुकी रह गईं । इस प्रकार निश्चलता की पहिचान व पकड़ इतना आसान कार्य नहीं है, जो आज के विज्ञान को चुनौती देने के लिए एक विशाल केन्द्रीय कर्म विज्ञान सम्बन्धी संस्थान के निर्माण की अपेक्षा रखती है, जो विश्व में अप्रतिम, अद्वितीय एवं अलौकिक हो । जहाँ उच्चतम मस्तिष्कों को सभी उपलब्ध लोकोत्तर एवं लौकिक ज्ञान, विज्ञान की सुविधाएं उपलब्ध होती रहें जो किसी काल या युग में लौकिक शासनों द्वारा दी जाती रही थीं । विगत शताब्दी में ऐसा प्रयास विलहैम कैंसर इंस्टिट्यूट, जर्मनी में तथा बाद में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में एलैक्जेंडर फ्लैक्सनर की प्रिंसटन की इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टूडीज (garden of the lonely wise) में किया गया, जहाँ आइंस्टाइन को ही सर्वप्रथम जोडने आमंत्रित किया गया। ग्रंथ निर्देश 1. आचार्य उमास्वामि, तत्त्वार्थसूत्र । 2. फ्रायड, सिविलिजेशन एण्ड इट्स डिस्गस्ट |, 3. बरट्रेंड रसैल, इंट्रोडक्शन टू मेथामेटिकल फिलासफी । 4. जैन, एल. सी., ताओ ऑफ जैन सांइसेज ।, 5. प्वांकरे, वेल्यु ऑफ सांइस 1, 6. आइंस्टाइन, मीनिंग ऑफ रिलेटिविटी । -निदेशक गुलाब रानी कर्मा साइंस म्यूजियम दीक्षा ज्वैलर्स, सराफा, जबलपुर - 482002
SR No.538057
Book TitleAnekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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