SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त-57/3-4 है। जगत् ज्ञेय रूप चितवन में आता है-अखिल सष्टि को लिए हए-उस ज्ञेय का ज्ञाता उक्त धारणा को अपने स्वरूप को ज्ञान रूप से समन्वित कर लेता है और ज्ञान, ज्ञाता, ज्ञेय के तीनों रूपों को अपनी धारणा में ले आता है। वहाँ संवेग चेतना मंद होती हई लघु ज्ञान चेतना को स्थान देती चली जाती है और जीव प्रतीक्षा करता है कि कब कर्म लिप्ति (लेप) को जलाने के लिए ध्यान रूपी अग्नि रखकर तप की धौंकनी से शीघ्र ही आत्मा या चेतन को कर्म के जाल से मुक्त कर लिया जाये। चेतना को केवलज्ञान चेतना में परिणत कर लिया जाये। ___ अभीक्ष्ण संवेग की निरन्तरता में समष्टि की समग्रता का जो दृश्य उपस्थित होता है वह समय, प्रति समय के रूपांतरणों को सामने लाता है किन्तु उनमें एक छिपी हुई निश्चलता होती है जिसे Invariance कहते हैं। वही सत् की पहिचान का माध्यम बन जाती है। गणितीय दर्शन की यही उपलब्धि है कि वह निश्चलता से भिज्ञ कराने का सामर्थ्य रखता है। जैसे, भौतिकी में जब माइकेलसन, मोर्ले के प्रकाश गति संबंधी प्रयोग से एक अपनी सदी की विशालतम दुविधा (dilemma) उपस्थित हुई तो आइंस्टाइन ने छिपी हुई निश्चलता को खोज निकाला, विशिष्ट और व्यापक सापेक्षता का सिद्धान्त प्रचलित हुआ, अणुशक्ति का प्रादुर्भाव हुआ और अखिल विश्व में समग्र रूप से चित्रण करने वाले एक-सूत्री सिद्धान्त की रचना की ओर सभी महान् वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित हुआ। जगत के गणितीय दर्शन में जो स्वरूप उपलब्ध होता है वह कर्म को व उसके सम्पूर्ण सिद्धान्त को विकसित करने में उसे गणितीय वस्तु बनाकर उसमें छिपी हुई निश्चलता को तर्क या बीजगणित तथा प्रज्ञा या अंक और रेखा गणित द्वारा खोजने का प्रयास होता चला गया। वह क्या है जिसका स्वरूप निश्चल रहता है, यह खोज शताब्दियों, युग युगान्तरों की खोज की सामग्री को विशाल रूप देती गयी जो गणित के आलम्बन द्वारा परिपुष्ट होती चली गयी। जब चिन्तन चेतना में परिणत होता चला गया, तब संवेग निर्वेग में
SR No.538057
Book TitleAnekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy