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________________ अनेकान्त-57/3-4 हुआ, दुष्ट से दुष्ट दण्डों की समायोजना करता है, जो किसी अन्य जोड़े, सुखी परिवार, दुःखी जीव समूह, समाज या देश विदेश को संकटापन्न अवस्था में लाने हेतु सक्रियता की सीमाएं बढ़ाता चला जाता है। सभ्यता की शिखर पर पहुँचकर भी इन स्थितियों से भागा नहीं जा सका। मन की इस प्रकार खंड, खंड रूप स्मृति आदि बिम्बों को वास्तविकता अथवा कार्मिकता कहा जा सकता है किंतु वह न तो समग्र है, न अखण्ड या निश्चल है, जैसा कि सत् या सत्य होता है। पर्याय या गुण दृष्टि सीमाओं से बंधी होती है अतएव द्रव्य दृष्टि के रूप की, पर्याय व गुण को लिए समग्रता रूप, जगत् का स्वरूप संवेग की ओर ले जाता है। उक्त संवेग धर्मभावना के उद्भव में कार्यकारी हो जाती है। संवेग निरंतर हो तो मंद, तीव्र, निश्चल रूप में अनुभूत होता रहता है। यह संवेग मनोयोग रूप न होकर चेतना रूप होता है। जैसा कि हम पहले बतला चुके हैं कि चेतना तीन रूपों में कर्म निरपेक्ष होने से, होते हुए भी अपने तीन रूपों में विकसित होती है-कर्मफल चेतना (Subconscious) रूप में, कर्म चेतना (conscious) रूप में तथा ज्ञान चेतना (superconsciuos) रूप में। जहाँ मन कर्मों द्वारा, प्रकृतियों द्वारा, कषायों द्वारा प्रतिबंधित हुआ, सीमित उपलब्धियों वाला होता है, वहाँ चेतना स्वतंत्र रूप से मन के शांत होने पर उपस्थित हो जाती है। आलम्बन देने के लिए जो असीमित उपलब्धियों के प्रांगण में स्वमेव ले जाती है। यही जगत् स्वरूप के चिन्तन का परिणाम है, जो ऐसे संवेग को उत्पन्न करने का सामर्थ्य रखता है जो दस लक्षणों वाले धर्म की ओर उन्मुख करता हुआ तीव्रतम कषायों को क्षीण एवं नष्ट करने में सहायक हो जाता है। प्रश्न उठा है कि जगत् के स्वरूप को समग्र रूप में कैसे चिन्तवन में लाया जाये? एक तो तर्क का पथ है और दूसरा सरल प्रज्ञा का पथ जिसका अनुसरण अनेक योगी करते हैं। रेखाचित्र अनेक रंग मय, अनेक वर्णाक्षरों सहित, त्रिलोक को प्रकट करते हुए, तीनों लोकों के संभाव्य रूपों की कहानी दिग्दर्शित करते हुए निर्मित किये जाते हैं। पहले धारणाएं निर्मित की जाती हैं, फिर ध्यान की वस्तु बनायी जाती हैं। धारणा का निर्माण चिंतन का फल
SR No.538057
Book TitleAnekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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