________________
अध्यात्म-पद
ज्यों सुवास फल फूल में, दही दूध में घीव, पावक काठ पषाण में, त्यों शरीर में जीव ।
चेतन पुद्गल यों मिले, ज्यों तिल में खलि तेल, प्रकट एकसे दीखिए, यह अनादि को खेल । ।
वह वाके रस में रमें, वह वासों लपटाय, चुम्बक कर लोह को, लोह लगे तिह धाय ।
कर्मचक्र की नींद सों, मृषा स्वप्न की दौर, ज्ञानचक्र की ढरनि में, सजग भांति सब ठौर ।।
| वीर स
... कविवर बनारसीदास चालय
7141
रियादी