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________________ 120 अनेकान्त-57/1-2 में ग्रन्थ-रचना की और वे द्रव्यश्रुत के कर्ता हुए। उन्होंने अपना वह द्रव्य-भाव-रूपी श्रुतज्ञान लोहाचार्य के प्रति संचारित किया और लोहाचार्य ने जम्बूस्वामी के प्रति। ये तीनों-गौतम, लोहाचार्य और जम्बूस्वामी-सप्तप्रकार की लब्धियों से सम्पन्न थे और उन्होंने सम्पूर्ण श्रुत के पारगामी होकर केवलज्ञान को उत्पन्न करके क्रमशः निर्वृति को प्राप्त किया था। जम्बूस्वामी के पश्चात् क्रमशः विष्णु, नन्दिमित्र, अपराजित, गोवर्द्धन और भ्रदबाहु ये पांच आचार्य चतुर्दश-पूर्व के धारी अर्थात् सम्पूर्ण श्रुतज्ञान के पारगामी हुए। भद्रबाहु के अनन्तर विशाखाचार्य, प्रोष्ठिल, क्षत्रिय, जयाचार्य', नागाचार्य, सिद्धार्थदेव, धृतिषेण, विजयाचार्य", बुद्धिल्ल, गंगदेव और धर्मसेन ये क्रमशः 11 आचार्य ग्यारह अंगों और उत्पादपूर्वादि दश पूर्वो के पारगामी तथा शेष चार पूर्वो के एकदेश धारी हुए। ___ धर्मसेन के बाद नक्षत्राचार्य, जयपाल, पाण्डुस्वामी, ध्रुवसेन' और कंसाचार्य ये क्रमशः पांच आचार्य ग्यारह अंगों के पारगामी और चौदह पूर्वो के एकदेश धारी हुए। कंसाचार्य के अनन्तर सुभद्र, यशोभद्र, यशोबाहु और लोहाचार्य ये क्रमशः चार आचार्य आचारांग के पूर्णपाठी और शेष अंगों तथा पूर्वो के देश धारी हुए। ___ लोहाचार्य के बाद सर्व अंगों तथा पूर्वो वह एक-देशश्रुत जो आचार्य-परम्परा से चला आया था धरसेनाचार्य को प्राप्त हुआ। धनसेनाचार्य अष्टाँग महानिमित्त के पारगामी थे। वे जिस समय सोरठ देश के गिरिनगर (गिरनार) पहाड़ की चन्द्र-गुहा में स्थित थे उन्हें अपने पास के ग्रन्थ (श्रुत) के व्युच्छेद हो जाने का भय हुआ, और इसलिये प्रवचन-वात्सल्य से प्रेरित होकर उन्होंने दक्षिणा-पथ के आचार्यों के पास, जो उस समय महिमा 15 नगरी में सम्मिलित हुए थे ('दक्खिणा-वहाइरियाणं महीमाए मिलियाणं') 16 एक लेख (पत्र) भेजा। लेखस्थित धरसेन के वचनानुसार उन आचार्यों ने दो साधुओं को, जो कि
SR No.538057
Book TitleAnekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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