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________________ 100 अनेकान्त-57/1-2 अनुराग शब्द का अर्थ विधिरूप से कहा गया है, उस समय उसका अर्थ प्राप्ति और उपलब्धि होता है; क्योंकि अनुराग, प्राप्ति और उपलब्धि ये तीनों शब्द एकार्थवाचक हैं। ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए कि अभिलाषा केवल भोगों में ही निबद्ध मानी गई है, किन्तु जैसे भोगों की अभिलाषा निषिद्ध है, वैसे ही शुद्धोपलब्धि की अभिलाषा भी निषिद्ध मानी गयी है। वास्तव में जितनी भी अभिलाषा है, वह सब सम्यग्दर्शन के अभाव में होती है, इसलिए वह अज्ञानरूप ही है; क्योंकि जिसे तत्त्वार्थ की प्राप्ति नहीं हुई है, वही प्राप्ति करना चाहता है। जिसने प्राप्त कर लिया है, वह प्राप्ति की अभिलाषा से रहित है। वास्तव में जितनी भी अभिलाषायें हैं, वे सब केवल मिथ्याकर्म के उदय से होती हैं, इसलिए मिथ्या ही हैं; क्योंकि हम प्रत्यक्ष देखते हैं कि कोई भी अभिलाषा अपनी अभीष्ट क्रिया की सिद्धि कराने में समर्थ नहीं है। उदाहरणार्थ कहीं पर अभिलाषा के होने पर भी कारण सामग्री के मिल जाने से इष्टसिद्धि हो जाती है। यद्यपि सम्पूर्ण जगत् यश, लक्ष्मी, पुण्य और मित्र आदि की चाह करता है तथापि पुण्योदय के बिना केवल चाह मात्र से उनकी प्राप्ति नहीं होती। इसी प्रकार सम्पूर्ण जगत् जरा, मृत्यु और दरिद्रता की चाह नहीं करता है, तथापि यदि जीव के अशुभ का उदय है तो राग के बिना भी जबरदस्ती उनका संयोग हो जाता है। संवेग विधिरूप होता है और निर्वेद निषेधरूप होता है। विवक्षा वश ही ये दो हैं। वास्तव में इन दोनों में कोई भेद नहीं है। सब प्रकार की अभिलाषाओं का त्याग ही निर्वेद है; क्योंकि इसका यही लक्षण है। अथवा वह निर्वेद संवेग रूप धर्म प्राप्त होता है; क्योंकि जो अभिलाषा सहित है, उसके संवेग धर्म नहीं हो सकता। यदि क्रियामात्र को धर्म कहा जाय तो भी बात नहीं है क्योंकि मिथ्यादृष्टि के निरन्तर रागादि पाए जाते हैं इसलिए वास्तव में वह अधर्म ही है। वह राग रहित कभी भी नहीं हो सकता और सम्यग्दृष्टि जीव निरन्तर रागरहित होता है अथवा उसके सदाकाल राग नहीं पाया जाता। अनुकम्पा- जो भूखे, प्यासे अथवा अन्य प्रकार से दुःखी प्राणी को देखकर स्वयं दुःखित हृदय होता हुआ दयापूर्वक उसे अपनाता है, उसका दुःख दूर करने का प्रयत्न करता है, उसके अनुकम्पा होती है। अनुकम्पा का अर्थ
SR No.538057
Book TitleAnekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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