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________________ 58 अनेकान्त - 56/1-2 वेयणा खण्ड- ( वेदना खण्ड) इसके दो अनुयोगद्वार हैं। कुल सूत्र संख्या 1449 है। इस खण्ड की प्रथम कृति अनुयोगद्वार की सूत्र संख्या 75 है। द्वितीय वेणा अनुयोगद्वार विषय प्रतिपादन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। प्रस्तुत खण्ड का नाम वेयणा है। वर्गणा खण्ड- इसमें स्पर्श, कर्म और प्रकृति नामक तीन अनुयोग द्वार है। इन तीनों अनुयोग द्वारों में प्रथम अनुयोग द्वार के 63, द्वितीय के 31 एवं तृतीय के 142 सूत्र हैं। इस खण्ड में विभिन्न प्रकार की कर्म पुदगल वर्गणाओं का प्रतिपादन है। महाबंध खण्ड- षष्ठ खण्ड का नाम महाबध है। महाबंध का विस्तार 30 सहस्र श्लोक परिमाण है। प्रकृति, स्थिति, अनुभाग, प्रदेश बंध की व्याख्या इस खण्ड में है। नंदी संघ की पट्टावली में इन आचार्यो की समय सूचना भी है। आचार्य पुष्पदंत का समय वी. नि. 633 से 663 (वि. 163 से 193 ) तक और आचार्य भूतबलि का काल वी. नि. 663 से 683 (वि. 193 से 213 ) तक सिद्ध होता है । इतिहासकार डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन ने आचार्य पुष्पदंत का समय इसवी सन् 50 से माना है। इसी प्रकार से भूतबलि ने धरसेनाचार्य से सिद्धान्त विषयक शिक्षाएं ग्रहण की थी। भूतबलि ने अंकुलेश्वर में चातुर्मास समाप्त कर द्रविण देश में जाकर श्रुत निर्माण का कार्य किया है। पुष्पदंत द्वारा रचित प्राप्त सूत्रों के पश्चात भूतबलि ने षट्खडागम के शेष भाग की रचना की। डॉ. ज्योति प्रसाद जैन ने भूतबलि का समय ईसवी सन् 66 से 90 स्वीकृत किया है और षट्खडागम का संकलन ईसवी सन् 75 निर्धारित किया है। इन्द्रनन्दि के श्रुतावतार से ज्ञात होता है कि भूतबलि ने पुष्पदंत द्वारा रचित सूत्रों को मिलाकर पाँच खण्डों के छः हजार सूत्र रचे और तत्पश्चात् महाबध नामक छठे खण्ड की तीस हजार सूत्र की ग्रंथ रचना की। आचार्य कुन्दकुन्द एवं उनके ग्रन्थ आचार्य कुन्दकुन्द का दिगम्बर परम्परा में गरिमामय स्थान है। अध्यात्म
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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