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अनेकान्त-56/1-2
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दिगम्बर परम्परा में साहित्य रचना के क्षेत्र में आचार्य पुष्पदंत और भूतबलि का अनुदान सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है । षट्खण्डागम की रचना इन दोनों आचार्यो के सम्मिलित प्रयत्न का परिणाम है | )
ग्रंथ का परिचय इस प्रकार है।
षट्खंडागम
यह एक विशाल ग्रंथ है। इसके छह खण्ड है। प्रथम खण्ड का नाम जीवट्ठाण (जीवस्थान) है। द्वितीय खंड का नाम खुद्दाबंध (क्षुद्रकबंध), तृतीय खण्ड का नाम बंधसामित्त विचय खण्ड (बंधस्वामित्व विचय), चतुर्थ खण्ड का नाम वेयणा खण्ड - ( वेदना खण्ड), पाचवें खण्ड का नाम वर्गणा खण्ड तथा षठे खण्ड का नाम महाबंध है। षट्खण्डागम के छह खण्डों में चालीस सहस्र श्लोक है।
जीवट्ठाण खण्ड- इस खण्ड में सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भव, अल्पबहुत्व नाम के आठ प्रकरण है, तदन्नतर 9 चुलिकाएं हैं। जीव के गुण धर्म और नाना अवस्थाओं का वर्णन प्रस्तुत खण्ड में है। इसकी कुल सूत्र संख्या 2375 है।
खुदाबंध खण्ड- द्वितीय खंड का नाम खुद्दाबंध (क्षुद्रकबंध) है। इस खण्ड में 11 अनुयोगद्वार हैं। इस खण्ड के प्रारम्भ में अनुयोगों से पूर्व बंधकों के तत्त्वो की प्ररूपणा है एवं अनुयोगों के बाद चूलिका के रूप में महादण्डक प्रकरण दिया गया है। इस प्रकार प्रस्तुत खण्ड में 13 अधिकार हो जाते हैं। कर्म प्रकृति प्राभृत के बंधक अधिकार के बंध आदि चार अनुयोगों में से बंधक विषय का वर्णन इस खण्ड में किया गया है। खण्ड में कुल सूत्र 1582 है। महाबंधक की अपेक्षा यह प्रकरण छोटा होने के कारण इस खण्ड का नाम क्षुद्रक बंध है।
बंधसामित्त विचय खण्ड (बंध स्वामित्व विचय) - इस खण्ड में कर्मबंध करने वाले स्वामियों पर विचार किया गया है। यह इस खण्ड के नाम से ही स्पष्ट है। इस खण्ड के कुल 324 सूत्र है।