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________________ 56 अनेकान्त-56/1-2 प्रमेयरत्नमाला टिप्पण में सूत्र लक्षणों की व्याख्या निम्न प्रकार से की गई है अल्पाक्षरमसंदिग्धं सारवद् गूढनिर्णयम्। निर्दोषं हेतुमत्तथ्यं सूत्रं सूत्रविदो विदुः॥ अर्थात् अल्पाक्षरता, असंदिग्धता, सारवत्ता, गूढता, निर्दोषता, सहेतुता ये सूत्र के लक्षण हैं। इन समग्र लक्षणों से प्रस्तुत ग्रंथ की सूत्र शैली सरस और प्रभावक है। कषाय पाहुड ग्रन्थ में 15 अधिकार हैं और 53 विवरण गाथाओ सहित 233 गाथाएं है। इन अधिकारों में और 233 गाथा सूत्रो में क्रोधादि कषायों का, राग-द्वेष की परिणतियों का, कर्मो की विभिन्न अवस्थाओं का तथा इन्हे शिथिल करने वाले आत्म परिणामों का विस्तृत विवेचन है। धरसेन एवं षटखण्डागम (दिगम्बर परम्परा के आचार्य धरसेन अष्टांग महानिमित्त के पारगामी विद्वान् थे। अंग और पूर्वो का उन्हे एकदेशीय ज्ञान परम्परा से प्राप्त था तदो सव्वेसिगं-पुव्वाणामेगदेशो आइरिय परम्पराए। आगच्छमाणो धरसेणाइरियं संपत्तो॥ अग्रायणी पूर्व की पंचम वस्तु के अन्तर्गत (महाकम्मपयडी) नामक चतुर्थ प्राभूत का भी उन्हे विशिष्ट ज्ञान था। आगम मिधि सुरक्षित रखने का यह कार्य आचार्य धरसेन के दूरदर्शी गुण को प्रकट करता है। मंत्र तंत्र और शास्त्रों पर भी उनका आधिपत्य था। जैन समाज के पास आज षटखंडागम जैसी अमूल्य कृति है, उसका श्रेय आचार्य धरसेन को है। समय-संकेत- आचार्य धरसेन अर्हबलि के समसामयिक थे। प्राकृत पट्टावली के अनुसार धरसेन का समय वीर निर्माण सम्वत् 614-683 निर्धारित किया है।' नन्दीसंघ की प्राकृत पटावली में अर्हद्बली के लिए वी. नि. 565 ई. सन 38 का उल्लेख है। पुष्पदन्त और भूतबलि महामेधा सम्पन्न आचार्य थे। उनकी सूक्ष्म प्रज्ञा आचार्य धरसेन के ज्ञान-पारावार को ग्रहण करने में सक्षम सिद्ध हुई। आचार्य पुष्पदन्त और भूतबलि के शिक्षागुरु धरसेन थे।
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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