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________________ अनेकान्त-56/1-2 भ्रांतियों को दूर करके सत्य सर्वलोक द्वारा धारण की जाने वाली यथार्थता का प्रकाशन करता है। अर्थात् दीपक के प्रकाश से पूर्व जैसे कक्ष में स्थित वस्तुए विद्यमान रहते हुए भी प्रकाशित नहीं होती हैं। उसी प्रकार सम्पूर्ण लोक द्वारा धारण किया गया गर्भ भूत सत्य इतिहास के बिना सुव्यवस्थित नही होता।'' इसी इतिहास की परम्परा को सुदृढ़ व स्थायी बनाए रखने के लिए उपाध्याय ज्ञानसागर जी महाराज द्वारा पंचदिवसीय "भगवान महावीर के छब्बीस सौ वर्ष'' विषयक कार्यशाला मे हमें प्रथम शताब्दी में जैनधर्म विषय दिया गया था। इस आलेख में प्रथम शताब्दी के आचार्य साहित्यकार और कतिपय राजाओं के बारे में प्रकाश डाला गया है। लोक भाषा में भी जैन साहित्य की रचना पायी जाती है इसी से जर्मन विद्वान डॉ. विण्टरनित्स ने लिखा है कि भारतीय की दृष्टि से जैन साहित्य बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि जैन सदा इस बात की विशेष परवाह रखते थे कि उनका साहित्य अधिक से अधिक जनता के परिचय में आए। इसी से आगमिक साहित्य तथा प्राचीनतम टीकाएं प्राकृत मे ही लिखी गयीं। प्रमुख आचार्य गुणधर एवं कषायपाहुड गुणधर दिगम्बर परम्परा के मनीषी आचार्य थे। दिगम्बर परम्परा के श्रुतधर आचार्यो मे आचार्य गुणधर का नाम प्रमुख है। आचार्य गुणधर को पंचम ज्ञानप्रवादपूर्वगत दशम वस्तु के तृतीय पेज्जदोष पाहुड का ज्ञान था। यह उनके कषायपाहुड के अध्ययन स प्रतीत होता है आचार्य गुणधर महाकम्मपयडि पाहुड के भी विशिष्ट ज्ञाता थे। नन्दीसंघ की प्राकृत पावली में अर्हदबलो का समय वीर नि. सं. 565 (विक्रम सं. 95) है। डॉ. नेमिचंद शास्त्री आदि विद्वानों ने गुणधराचार्य का समय वि. पूर्व प्रथम शताब्दी निर्धारित किया है।' कषाय पाहुड ग्रंथ को समुद्र के तुल्य माना गया है। यह ग्रंथ दिगम्बर परम्परा का कर्मविज्ञान सम्बन्धी प्रतिनिधि ग्रंथ है। इसका दूसरा नाम पेज्जदोष पाहुड भी है। कषाय पाहुड के 16000 पद्य परिमाण में वर्णित कर्म सम्बन्धी गंभीर विषय को 180 गाथाओं में उपसंहृत कर देना गुणधर आचार्य की विशेषता का प्रतीक है। गाथा सूत्र शैली में कषाय पाहुड की रचना हुई है।
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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