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________________ 36 अनेकान्त-56/1-2 श्रीराम कृतातवक्र सेनापति के द्वारा रथ पर आरूढ करा सती सीता को दूर वन मे छोड़ देने हेतु तीर्थ यात्रा के बहाने भेज देते है। वह सेनापति दु:खी मन से श्रीराम द्वारा वन मे छोड़ने का प्रयोजन सीता से कहता है, तब सती सीता सेनापति से कहती है- "हे सेनापति! तू मेरे वचन रामसू कहियो कि मेरे त्याग का विषाद आप न करणा, परम धीर्यकू अवलम्बन कर सदा प्रजा की रक्षा करियो, जैसे पिता पुत्र की रक्षा करें। आप महान्यायवत हो अर समस्त कला के पारगामी हां, राजा क प्रजा ही आनन्द का कारण है। राजा वही जाहि प्रजा शरद की पूनों के चन्द्रमा की न्याई चाहे। अर यह संसार असार है, महा भयंकर दु:ख रूप है। जो सम्यकदर्शन कर भव्यजीव ससारसू मुक्त होवे हैं. सो तिहारे आराधिवे योग्य हैं। तुम राजतै सम्यग्दर्शन कू विशेष भला जानियो। यह राज्य तो विनाशीक है, अर सम्यग्दर्शन अविनाशी सुख का दाता है, सो अभव्य जीव 'दा कर, तो उनकी निदा के भय से हे पुरुषोत्तम! सम्यकदर्शन कृ कदाचित् न तजना।" ___ इसी तरह 17 वे पर्व के अन्तर्गत जब सीताजी रथ पर आरूढ हो वनकी ओर जा रही हैं, उस समय के प्रकृति-चित्रण के अन्तर्गत गगा नदी का वर्णन भी कितना महत्त्वपूर्ण है-"या भाति चितवती सीता आगै गगा को देखती भई। कैसी है गंगा? अति सुन्दर है, शब्द जाके, अर जाके मध्य अनेक जलचर जीव, मीन, मकर, ग्रहादिकविचरे है, तिनके विचरिये करि उद्धत लहर उठे हैं, तातै कम्पायमान भए है, कमल जा विषै, कर मूल से उपाड़े है, तीर के उत्तंग वृक्ष जाने, अर उखाड़े है पर्वतनि के पाषाण के समूह जाने. समुद्र की ओर चली जाय है, अति गम्भीर है, उज्जवल फूलो कर शोभै है, झागों के समूह उठै है, अर भ्रमते जे भंवर तिनकर महा भयानक है। अर दोनो ढाहावो पर बैठे पक्षी शबद करै तै, सो परम तेज के धारक रथ के तुरंग, ता नदी को तिर पार भए. पवन समान है वेग जिनका, जैसे साधु संसार समुद्र के पार होय। प्रस्तुत हिन्दी अनुवाद बीसवी शताब्दी में राष्ट्रभाषा हिन्दी में रविषेणाचार्य कृत पद्मपुराण का अनुवाद प्रस्तुत करने वाले सागर (म.प्र.) निवासी साहित्य मनीषी डॉ पन्नालाल जी साहित्याचार्य का जैन साहित्य के विकास में अद्वितीय योगदान है। इन्होंने सस्कृत भाषा में अनेक मौलिक ग्रन्थों का सृजन तो किया ही, साथ
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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