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________________ अनेकान्त-56/1-2 परिवर्तन कर विविध वृत्तो का प्रयोग किया गया है। 42 वे पर्व की रचना नाना छंदो में की गई है। 78 वें पर्व की विशेषता यह है कि उसमे वृत्त-गन्धि गद्य का प्रयोग हुआ है, जिसमें भुजंगप्रयात छन्द का आभास मिलता है।' अलंकार योजना की अपेक्षा से भी यह काव्य बेहद सफल है। इसमें अनुप्राय श्लेष, उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अतिशयोक्ति, सन्देह, विरोधाभास, भ्रान्तिमान. परिकर. दृष्टान्त, काव्यलिग, यथासख्य आदि 32 अलकार प्रयुक्त हुए है। रविषेणाचार्य के पदमचरित (पद्मपुराण) में सभी आवश्यक पुराणतत्त्वो का सतुलित समावेश है। जैसे-संवादतत्व, पारिवारिक जीवन, कथा की रोचकता. जनमानस का प्रतिफलन, पुराणगाथाएँ, परम्पराए, अलकृत वर्णन, समकालीन सामाजिक समस्यायें, प्रेम, शृगार, कोतुहल, मनोरजन, धर्म, श्रद्धा आदि। पद्मपुराण की भाषा-वचनिका की विशेषतायें : __ आ. रविषेण कृत संस्कृत भाषा के विशालतम पद्मपुराण ग्रन्थ को हिन्दी (पुरानी हिन्दी) भाषा की गद्य-विधा में सर्वप्रथम प्रस्तुत करने का श्रेय बसवा (राजस्थान) निवासी 18वीं शती के श्रेष्ठ गद्यकार एव महाकवि प दौलतराम जी कासलीवाल को जाता है। इन्होने इस सस्कृत पद्यमय पद्मपुराण को प्राचीन हिन्दी की गद्यविधा भाषा-वचनिका रूप मे सहज, सरल, प्रवाहमयी शैली में इस तरह प्रस्तुत किया कि यह अपने आप में एक मौलिक और स्वतत्र कृति सी लगती है। "भाषा वचनिका" जयपुर के आसपास की लोकबोली "ढूँढारी'' में जो पुरानी हिन्दी के ही एक रूप में लिखी गयी गद्यविधा का ही नाम है, जो कि पूरे उत्तर भारत में आज भी पढ़ी और समझी जाती है। प. दौलतराम जी कृत पद्मपुराण की इसी भाषा-वचनिका का हिन्दी गद्य साहित्य के विकास मे महत्त्वपूर्ण योगदान माना गया है। पद्मपुराण भाषा वचनिका के एक-दो गद्याशों के उद्धरणो से हम प. दौलतराम जी की सरल-सहज-प्रवाहमयी भाषा और शैली को भी समझ सकते हैं, साथ ही यह भी जान सकते हैं कि आचार्य रविषेण के शब्दों को प. दौलतराम जी ने हृदयग्राही भावों के रूप में किस तरह प्रस्तुत किया है। यह पद्मपुराण भाषा वचनिका के 97 वें पर्व के उस प्रसग का उद्धरण है, जब
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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