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________________ अनेकान्त-56/1-2 अनेक पद्य-प्रतिपद्य मिल जाते हैं। इससे तो यह भी लगता है कि आ. रविषेण का यह पद्मचरित ग्रन्थ विमलसूरि कृत पउमचरियं को सम्मुख रखकर रचा गया है। फिर भी दोनों ग्रन्थों के तुलनात्मक अध्ययन से विद्वत् वर्ग ने अनेकविध व्यतिक्रम, परिवर्तन, परिवर्धन, विभिन्न सैद्धान्तिक मान्यताओ प्रभृति तथ्यो की ओर ध्यान आकर्षित किया है। इसके अतिरिक्त रविषेण के कई विवेचन इतने पल्लवित और परिवर्धित है कि सस्कृत की यह कृति प्राकृत 'पउमचरिय' से डेढ़ गुने से भी अधिक हो गई है। इसलिए यह अपने आप मे पूर्ण मौलिक ग्रन्थ है। पौराणिक आख्यान और पद्मपुराण भारतवर्ष की वैदिक और जैन परम्पराओं में "पुराण'' विधा के अन्तर्गत विशाल साहित्य उपलब्ध है। यह धार्मिक साहित्य की एक ऐसी विधा है, जिनके चरित नायको का आदर्श जीवन हमारे लिए मात्र अनुकरणीय ही नही अपितु पूजनीय भी है। पुराण इतिहास ग्रन्थ नही है, किन्तु भावनात्मक दृष्टि से हमारे लिए श्रद्धा और आस्था के प्रमुख केन्द्रबिन्दु होने से इतिहास ग्रन्थो की अपेक्षा अति महत्त्वपूर्ण होते हैं। __ आचार्य रविषेण कृत प्रस्तुत "पद्मपुराण" पद्म अर्थात् राम से संबंधित कथा का एक अति महत्वपूर्ण विशाल पुराणग्रन्थ है। यहाँ यह जानना भी जरूरी है कि जैनाचार्यों ने "पुराण'' की परिभाषा किस तरह से प्रस्तुत की है "पुरातनं पुराणं स्यात्' (आदिपुराण 1/21)-इस परिभाषा के अनुसार प्राचीन आख्यानों को पुराण कहा जाता है। इसमें जैन परम्परा मे पूज्य एवं मान्य तिरेसठ शलाका पुरुषो में से किसी एक शलाका पुरुष का प्रमुखता से चरित निबद्ध रहता है। अतः सत्पुरुष के चरित की कथावस्तु पुराण मे समाविष्ट होने के कारण इन्हें "पुराण" सज्ञा दे दी जाती है। साथ ही इसी चरितात्मक वस्तुतत्व के निबद्ध होने से ऐसी रचनाओं को "चरित" भी कहा जाता है। पौराणिक कथाये प्राचीन परम्परा से प्राप्त और प्रचलित श्रद्धा और विश्वास पर आधारित होने के कारण ये सभी सत्य कथानक समझे जाते है। जिनका उद्देश्य इनमें वर्णित आदर्शो का अनुकरण कर समाज में नैतिक और आस्तिक मूल्यो
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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