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अनेकान्त-56/1-2
संस्कृत और अपभ्रंश इन प्राचीन तथा कुछ दक्षिण भारतीय भाषाओ में तो रामकथा विषयक काफी समृद्ध और श्रेष्ठ साहित्य उपलब्ध है।
रामकथा विषयक प्रमुख जैन साहित्य में पद्मपुराण नाम के ही कई ग्रन्थ उपलब्ध है, सभी राम-रावण की कथा के प्रतिपादक है। जैसे-1. 'आचार्य विमलसूरि' कृत (ई. सन् 4) पउमचरियं, जो 7 अधिकारों में विभक्त 118 सर्ग प्रमाण प्राकृत महाकाव्य। 2. आचार्य कीर्तिधर (ई. 600) कृत रामकथा के आधार पर आ. रविषेण द्वारा (ई. 677) में रचित संस्कृत पद्मबद्ध 'पद्मचरित' या 'पद्मपुराण' जो छ: खण्डों तथा 123 पर्वो मे विभक्त 20,000 श्लोकप्रमाण है। 3. स्वयम्भू (ई. सन् 738-840) कृत 'पउमचरिउ' नामक अपभ्रंश काव्य जो 90 सन्धियो मे विभक्त 12000 श्लोक प्रमाण है। 4. कवि रइधू (ई. 1400-1479) कृत 'पउमचरिउ' नामक अपभ्रश काव्य तथा चन्द्रकीर्ति भट्टारक (ई. 1597), कृत पद्मपुराण।
इनके अतिरिक्त पद्मपुराण नाम की अन्य कृतियो के नाम डॉ. गुलाबचन्द्र चौधरी ने (जैन साहित्य का बृहद् इतिहास; भाग 6 पृ. 42-43 मे) इस तरह उल्लिखित किये है-1. पद्मपुराण-जिनदास कृत (16वीं शती)। ये भट्टारक सकलकीर्ति के शिष्य थे इसमें उन्होने रविषेण के पद्मपुराण का अनुसरण किया है। इसका अपरनाम रामदेवपुराण भी है। 2. पद्मपुराण (रामपुराण)-सोमसेन (स. 1656), 3. पद्मपुराण-धर्मकीर्ति (सं. 1689), 4. पद्मपुराण-चन्द्रकीर्तिभट्टारक, 5. पद्मपुराण-चन्द्रसागर, 6. पद्मपुराण-श्रीचन्द्र, 7. पद्ममहाकाव्य-शुभवर्धन गणि, 8. रामचरित्र-पद्मनाभ, 9.पद्मपुराण पंजिका, प्रभाचन्द या श्रीचन्द्र।
रामकथा से सम्बद्ध अन्य रचनाएँ (सस्कृत)- 1. सीता चरित्र, 2. सीता चरित्र-शान्तिसूरि कृत 3, ब्रह्मनेमिदत्तकृत सीता चरित्र, 4. अमरदास कृत सीता चरित्र। - इसके अतिरिक्त अध्यात्म रामायण, आनन्द रामायण, अद्भुत रामायण नाम से कई रामायण ग्रन्थ भी मिलते हैं।
प्राकृत के विमलसूरि कृत 'पउमचरियं' की कथावस्तु के विन्यास के समान ही रविषेण कृत प्रस्तुत पद्मपुराण में वस्तु-विन्यास दिखाई पड़ता है। विषय और वर्णन प्राय: ज्यों के त्यों तथा पर्व-प्रतिपर्व और प्रायः लगातार