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अनेकान्त-56/3-4
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एक निश्चित कम्पन की वि. चु. तरंगों को रेडियो-रिसीवर द्वारा प्राप्त करने के लिए, उसमें एक ऐसे दोलित्र (Oscillator) का उपयोग करते हैं जो उस विशिष्ट कम्पन की तरंगों को पैदा कर रहा हो। उसे विद्युतीय साम्यावस्था का सिद्धान्त (Principal of Electrical Resonance) कहते हैं। इससे आकाश में व्याप्त वह विशेष कम्पन वाली तरंगें रिसीवर द्वारा ग्रहण कर ली जाती हैं। रिसीवर में यह संधारित्र-प्रणाली (Condenser) द्वारा सम्पन्न (Tunned) कर ली जाती है।
आत्म-प्रदेशों द्वारा कार्मण स्कन्धों की तरंगों को ग्रहण करने में यही प्रक्रिया होती है। कर्म उदय/विपाक के समय, आत्म-प्रदेशों में तीव्र कम्पन होते हैं, जिससे अशुद्ध भावों का सृजन होता है।
आत्मा प्रदेशों में यह कम्पन (Vibrations) मन, वाणी और शरीर के अंग-उपांग के परिस्पन्दन की सहायता से होता है, जिसे जैनदर्शन में “योग" संज्ञा से अभिहित किया गया। ___ यहाँ आत्म-प्रदेश दोलित्र (Oscillator) की भांति व्यवहार करता है। आत्म भावों के अनुरूप उत्पन्न तरंगें जिस तरंग लम्बाई (wavelength-) की होती हैं उन्हीं तरंग लम्बाई (A) वाली कर्म-वर्गणा की तरंगों को स्वतः आकाश से अपनी ओर आकर्षित कर ग्रहण कर लेता है (वि. साम्या. के सिद्धान्तानुसार) जिसे जैनदर्शन की भाषा में कहें कि भाव कर्मो से द्रव्यकर्मो का आना (आसव तत्त्व) होता है।
शंका-आत्म प्रदेशों में कम्पन क्यों होता है? कौन प्रेरक है?
समाधान-पूर्वबद्ध कर्म का जब विपाक समय आता है तो वे आत्म-प्रदेशों में कम्पन उत्पन्न करके विलग हो जाते हैं। कर्म विशेष का उदय/विपाक काल के समय यह परिस्पन्दन होता है। चूंकि प्रति समय कर्म का उदय होता है जिससे प्रति समय आत्म-प्रदेश-स्पन्दन भी होता रहता है और वे नवीन कर्मों
को ग्रहण करने की भूमिका का निर्माण करते हैं। ___ आत्म प्रदेश और कर्म-परमाणुओं का यह संश्लेष, कर्मबंध है। इस कर्म बंध के दो काराक (Elements) हैं :