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________________ अनेकान्त-56/3-4 111 | 'सत् द्रव्य लक्षणं' ( सूत्र 5 / 29 ) और सत् का लक्षण 'उत्पादव्यय ध्रौव्य युक्तं सत्' कहा है (सूत्र 5 / 30 ) । सत् सत्ता - अस्तित्व का सूचक है। सत्ता स्वभावतः उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य इन तीनों से युक्त होती है। अपने मौलिक तत्त्व अर्थात् द्रव्यत्व को स्थिर ( ध्रौव्य) रखकर पूर्व कारण रूप पर्याय का विनाश और उत्तर कार्य रूप पर्याय की उत्पत्ति होना, प्रत्येक द्रव्य की त्रिकाल नियति । यह तीनों कार्य एक ही समय में होते हैं । इसलिए द्रव्य नित्यानित्य है । नित्य होते हुए भी कथंचित् अनित्य है और अनित्य होते हुए भी कथंचित नित्य । द्रव्य रूप से नित्य और पर्याय रूप से अनित्य । इस प्रकार द्रव्य त्रिलक्षण रूप है। है I 'सत् द्रव्य लक्षण' सूत्र मे सत् शब्द अनेकार्थी है। धवला के टीकाकार आचार्य वीरसेन के अनुसार सत् का अर्थ तत्त्व है । यह सत् सर्व पदार्थो में व्याप्त है और सर्व विचारों का आधार है। आचार्य अकलंकदेव ने सत् शब्द का प्रयोग प्रशंसा, अस्तित्व प्रतिज्ञा एवं आदर सूचक के रूप मे किया है 1 विद्यमान संदर्भ में सत् शब्द सर्व द्रव्यो के अस्तित्व - सत्ता का सूचक है। सत् की गति सर्व पदार्थो में अप्रतिहत होने से वह त्रैकालिक है वह स्वयं सिद्ध एवं अहेतुक होने से सर्वत्र सर्व अवस्थाओं में पाया जाता है। सत् गुण, सत्ता, तत्व, द्रव्य, वस्तु, अर्थ, विधि एव अस्तित्व का सूचक है 1 सत् का कभी नाश नहीं होता और असत् की कभी उत्पत्ति नहीं होती । वस्तु स्वभाव का यह त्रैकालिक सत् ही धर्म रूप सत्य है जो विश्व व्यवस्था का आधार है। इसके कारण सभी पदार्थ । वस्तुएँ विश्व में अनादि काल से अवस्थित हैं और अनंत काल तक बनी रहेंगी। सभी पदार्थ अपने - अपने शुद्ध स्वभाव अर्थात् परमपारिणामिक भाव रूप सदैव बने रहें, उनमें किसी प्रकार की विकृति न हो, कोई पदार्थ एक-दूसरे की सत्ता का अतिक्रमण न करे, केवल अपने-अपने द्रव्य-क्षेत्र - काल-भाव में निर्विकार रूप से परिणमित होते रहें, यही . उनका सौन्दर्य आनंद और सत् / सत्य रूप धर्म है । लोक छह द्रव्यों का समूह है- जीव, पुदग्ल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल । जीव द्रव्य चेतन है शेष अचेतन हैं । पुद्गल द्रव्य रूपी है, शेष अरूपी हैं । जीव द्रव्य अनन्त हैं, पुद्गल द्रव्य उनसे भी अनंत अर्थात अनतानंत हैं 1
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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