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________________ अनेकान्त-56/1-2 19 व्याकरण सम्बन्धी कठोरता की उपेक्षा की है। तात्पर्यवृत्ति में उद्धरणों की भी बहुतलता है। उद्धरणों से प्रामाणिकता पुष्ट होती है । प्रसंग प्राप्त उद्धरण प्रस्तुति आचार्य जयसेन की नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभा की परिचायिका है। जयसेनाचार्य की तात्पर्यवृत्ति की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि स्वतंत्र भेदों को सुरक्षित रखना है। आचार्य कुन्दकुन्द के शब्दों की सुरक्षा तात्पर्यवृत्ति के माध्यम से ही हुई है। आचार्य कुन्दकुन्द का परिचय कराने वाले आचार्य जयसेन ही हैं। इनकी आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी के प्रति अगाध भक्ति अनुकरणीय है। आचार्य जयसेन के पूर्व एक सहस्त्र वर्ष आचार्य कुन्दकुन्द के नाम से अपरिचित रहने वाले अध्यात्म जगत् के ऊपर जयसेनाचार्य का महान् उपकार है कि उन्होंने अध्यात्म विद्या के अधिष्ठाता आचार्य श्री कुन्दकुन्द का परिचय कराया। अध्यात्म विद्या रसिक समाज को समयसार की तात्पर्यवृत्ति विषय वस्तु को समझने में अत्यधिक सहायक है इसलिए प्रत्येक अध्यात्मविद्या एवं दर्शनशास्त्र के अध्येता को इसका अध्ययन अति आवश्यक है। आचार्य श्री ज्ञानसागर महाराज ने हिन्दी रूपान्तर और विशेषार्थ मण्डित कर श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्य की सर्वोच्च कृति समयसार पर आचार्य श्री जयसेन लिखित तात्पर्यवृत्ति को जन-जन के लिए ग्राह्य बना दिया है। समयसार तात्पर्यवृत्ति के बिना समयसार को पाना अशक्य ही है। अतः प्रत्येक आत्मतत्त्व जिज्ञासु को आचार्य श्री ज्ञानसागर महाराज विशेषार्थ सहित समयसार तात्पर्यवृत्ति को अपने स्वाध्याय का विषय बनाना चाहिए। संदर्भ 1. 'समयो खलु णिम्मलो अप्पा' रयणसार गा. 153, 2. जयधवल पु. 1 पृ. 357, 3. समयसार पृष्ठ 3 उपाचार्य ( रीडर ) संस्कृत विभाग दिगम्बर जैन कॉलेज, बड़ौत
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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