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________________ अनेकान्त-56/3-4 उस राज्य का अस्तित्व बना रहा किन्तु यदि राजनीतिक आलस्य एवं प्रमाद-वश गुप्तचर-व्यवस्था लचर हुई, तो वह राज्य अधिक समय तक अस्तित्व में नहीं रह सका। सन्दर्भ-संकेत 1 रघुवश, 17,48, 2 किरातार्जुनीय, 1 20, 3 विक्रमाकदेवचरित, 14.28, 1 जानकीहरण, 11 1, 5 मुद्राराक्षस, अक-1, 6 उत्तरगमचरित, अक-1, 7 अर्थशास्त्र, 1/11/1, शुक्रनीति, 136, अविमारक, 6 10, 8 प्रतिज्ञा, अक-3, 9 विक्रमाकदेवरित, 11, 10. महाभारत, आदिपर्व, 134 63, 11 वेणीसहार, 6/2, 12 किरातार्जुनीय, 11, 13 बुद्धचरित, 9,82, 14 किरातार्जुनीय, 12, 15 विक्रमाकदेवरित, 1, 1. 16 शिशुपालवध, 2 113, 17 मुद्राराक्षस, अक-1, 18 वेणीसहार, 6/3-4, 19 अर्थशास्त्र, 110.6, 1 11 7, 20 मुद्राराक्षस, अक-1-2 21 प्रतिज्ञा०, अक-4, 22 मुद्राराक्षस, अक-2, 23 किरातार्जुनीय, 1 4-5, 24 अभिषेक, 4. 19, 25 मुद्राराक्षस, अक-4, 26 किरातार्जुनीय, 1 2), 27 अविमारक, 6/10, 28 प्रतिज्ञा), अंक-1, 29 कुमारसभव, 3.17, 30 किरातार्जुनीय, 11, 31 रघुवश, 14.31, 32 शास्त्री, नेमिचन्द्र, महाकवि भास, पृ 443, 33 मुद्राराक्षस, अक-2, 34 मुद्राराक्षस, अक-1 -रीडर, इतिहास विभाग एस.डी. (पी.जी.) कालेज मुजफ्फरनगर (उ.प्र.)
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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