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अनेकान्त-56/3-4
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को प्राप्त कर सकते थे। इन गुप्तचरों द्वारा भिक्षुणियों, वेश्याओं और ज्योतिषियों आदि का रूप भी धारण कर लिया जाता था, जिससे वे किसी भी भेद की सहजता से जानकारी प्राप्त कर सके। दृश्यकाव्य मुद्राराक्षस में गुप्तचरों के वेश-परिवर्तन तथा उसकी कार्य-क्षमताओं का विस्तृत विवरण प्राप्त होता है। यथा
निपुणक-यम-पात्र लेकर गली-गली घूमनेवाले निपुणक को, स्वयं चाणक्य का शिष्य भी नहीं पहचान सका था।
सिद्धार्थक-चाणक्य द्वारा नियुक्त सिद्धार्थक शकष्टदास के मित्र के रूप में विचरण करता हुआ बताया गया है।
विराधगुप्त-राक्षस द्वारा नियुक्त यह गुप्तचर आहितुण्डिक सपेरे के रूप में विचरण करता हुआ बताया गया है एक क्षण के लिए स्वयं राक्षस भी उसे न पहचानते हुए, संशय में पड़ गया था।
शिल्पी दारुवर्मा-राक्षस द्वारा नियुक्त यह गुप्तचर, चन्द्रगुप्त के वध के उद्देश्य से रचित षड्यंत्र में शामिल था।
बर्वरक-चन्द्रगुप्त का महावत बर्वरक, राक्षस द्वारा नियुक्त छद्मवेशधारी गुप्तचर था।
विभीत्सक-चन्द्रगुप्त के शयन-कक्ष की दीवार के भीतर गुप्त रूप से छिपे हुए, रात्रि में सोते हुए चन्द्रगुप्त पर प्रहार करने वाले व्यक्तियों में, विभीत्सक भी एक गुप्तचर था, जो राक्षस द्वारा नियुक्त किया गया था।
गात्रसेवक-प्रतिज्ञायौगन्धरायण नाटक में वासवदत्ता की हथिनी भद्रवती का महावत बनकर रहनेवाला, यौगन्धरायण द्वारा नियुक्त, गुप्तचर गात्रसेवक मदिरा न पीते हुए भी मदोन्मत्त व्यक्ति के समान प्रलाप करता हुआ बताया गया है।
गुप्तचर न केवल विविध वेश-परिवर्तन कर सकते थे अपितु विविध भाषाओं के भी जानकार होते थे। गुप्तचरों द्वारा सम्भाषण के लिए सामान्यतः