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________________ 64 अनेकान्त-56/3-4 सांकेतिक भाषा का ही प्रयोग किया जाता था। गुप्तचरों के कर्त्तव्य गुप्तचरों का कार्य-क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत होता था, जिन्हें गुप्तचरों के कर्तव्यो की संज्ञा प्रदान की जा सकती है। गुप्तचर का सर्वप्रथम कर्त्तव्य अपने स्वामी के प्रति निष्ठावान होना माना गया है। किरातर्जुनीय महाकाव्य में अपने स्वामी में निष्ठा न रखनेवाले अथवा राजा को सुमंत्रणा न देनेवाले गुप्तचरों को योग्य सेवक नहीं माना गया है। अपने स्वामी के साथ कपट न करना गुप्तचरों का परम कर्तव्य माना गया है।29 शत्र-राज्य में गप्त-रूप से रहनेवाले गप्तचरों का यह कर्त्तव्य था कि वे वहाँ की गतिविधियों पर कड़ी दृष्टि रखते हुए अपने प्रत्येक संदेश को गुप्त-रूप से स्वामी तक पहुंचाएँ। वस्तुतः शत्रु-राज्य में जाकर अपने स्वामी के कार्यो को सिद्ध करना ही गुप्तचरों का प्रमुख कार्य स्वीकार किया गया है। अभिषेक नाटक में स्वपक्ष और शत्रु-पक्ष के उच्च अधिकारियों की गतिविधियों की जानकारी प्राप्त करने के साथ-साथ उनमें व शत्रु-सेना में परस्पर फूट डालना ही गुप्तचर का परम कर्त्तव्य माना गया है। रावण ने राम की सेना का अनुमान लगाने के लिए ही अपने गुप्तचरों को राम के शिविर में प्रविष्ट कराया था। मुद्राराक्षस में कृत्य-पक्ष अर्थात् भीत, लुब्ध, क्रुद्ध और अपमानित लोगों को वश में करना भी गुप्तचरों का कर्तव्य बताया गया है।5 किरातर्जुनीय महाकाव्य में विभिन्न उपायों से राजमहल की आन्तरिक गतिविधियों की सूचना राजा तक पहुँचाना गुप्तचर का कर्त्तव्य बताया गया है। दुर्योधन अपने गुप्तचरों के माध्यम से ही अन्य राजाओं का वृतांत प्राप्त करता था। गुप्तचरों का विशेषाधिकार राज्यानुशासन का महत्त्वपूर्ण अंग होने के कारण गुप्तचरों को कुछ विशेषाधिकार भी प्राप्त थे, जिनके कारण उनके पद की गरिमा द्विगुणित हो जाती थी। गुप्तचर अपने इन विशेषाधिकारों का प्रयोग स्वेच्छा से किसी भी समय कर सकता था। शत्रु-राज्य में राजा द्वारा भेजे गये समस्त गुप्तचरों को राज्य की ओर से समस्त सुविधाएँ प्राप्त करने का अधिकार होता था। वे
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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