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अनेकान्त-56/3-4
गुप्तचरों की योग्यता
प्राचीन भारतीय संस्कृत-महाकाव्यों और दृश्यकाव्यों में गुप्तचरों की योग्यता-संबंधी जानकारी प्राप्त होती है। महाकाव्य किरातार्जुनीय में कहा गया है कि गुप्तचर को सच्चा-मित्र, विश्वासी और राजा का आज्ञाकारी होना चाहिए। विक्रमांकदेवचरति के अनुसार गुप्तचर नीतिशास्त्रों में निपुण, वाक्पटु और मृदुभाषी होने के साथ-साथ वस्तुस्थिति को समझनेवाला, प्रखरबुद्धि और स्वामिभक्त होना चाहिए।' गुप्तचरों में यह भी योग्यता होनी चाहिए कि वे दूसरे पक्ष के दोषों को तो जान ले किन्तु उनके दोषों को कोई न समझ पाये, वे शत्रुपक्ष में इस प्रकार घुलमिल जायें कि सभी उन पर विश्वास करने लगे और वे वहाँ से भी वेतन पाते रहें। मुद्राराक्षस में कहा गया है कि गुप्तचरों को कुलीन राजभक्त, विश्वसनीय, वेश आदि बदलने में निपुण, विभिन्न देशों के वेश, भाषा, रीति-रिवाज, मार्ग आदि जानने में दक्ष, विभिन्न कलााओं में पारंगत तथा स्वपक्ष एवं परपक्ष के विचारों को जानने में कुशल होना चाहिए।" वेणीसंहार नाटक के अनुसार वे गुप्तचर योग्य होते हैं जो वेश
और बोली परिवर्तन में दक्ष हों, अव्यक्त पद-चिन्हों का ज्ञान रख सके. कुचली हुई लताओं को परख सके, विभिन्न प्रकार की गुफाओं का ज्ञान रखते हों तथा दूसरों की पद-पंक्ति पहचानने में चतुर हो। गुप्तचरों का वेश
वेश-परिवर्तन में चतुर गुप्तचर देश काल तथा परिस्थितियों के अनुसार अपने असली रूप में न रहकर नकली वेश में विचरण करते थे। राजा अथवा राज्य की ओर से भी वेश-परिवर्तन एवं उनके क्रियाकलापों के विषय में किसी प्रकार हस्तक्षेप नहीं किया जाता था। गुप्तचर विविध वेश धारण करके और शत्रु के साथ घुल-मिल कर अपना अभीष्ट सिद्ध करने का प्रयास करते थे। ____ संस्कृत साहित्य में वनचर, पुलिन्द, तापस, अंगारिक आदि वेश में विचरनेवाले गुप्तचरों का उल्लेख प्राप्त होता है। अर्थशास्त्र में भी गुप्तचरों के विभिन्न प्रकारों का वर्णन प्राप्त होता हैं, जो कापटिक, उदास्थित, गृहपति, वैदेहिक, तापस, क्षत्री-तीक्ष्ण, रसद, भिक्षु आदि वेश धारण करके विभिन्न रूपों