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________________ अनेकान्त-56/3-4 में ग्यारह प्रतिमायें कहा गया है। स्वामी कार्तिकेय के अनुसार ग्यारह प्रतिमायें इस प्रकार हैं-1. दार्शनिक, 2. व्रतिक, 3. सामायिकी, 4. प्रोषधोपवासी, 5. सचित्तविरत, 6. रात्रिमुक्तिविरत, 7. ब्रह्मचारी, 8. आरम्भविरत, 9. परिग्रहविरत, 10. अनुमतिविरत 11. उद्दिष्ट-विरत । पं. आशाधर, आचार्य अमितगति और श्री नामदेव आदि ने छठी रात्रिमुक्तिविरत प्रतिमा के स्थान पर दिवामैथुनत्याग प्रतिमा को स्वीकार किया है। समन्तभद्राचार्य के अनुसार आगे-आगे की श्रेणी पूर्व गुण को लिये हुए वृद्धि को प्राप्त होती है अर्थात् इनमें क्रम का उल्लंघन नही होता है। दिगम्बर परम्परा में श्री सोमदेव को छोड़कर सभी ने सचित्तत्याग को पाँचवीं प्रतिमा और आरंभत्याग को आठवीं प्रतिमा माना है। परन्तु सोमदेव ने इन्हें परस्पर परिवर्तित करके सचित्तत्याग को आठवीं प्रतिमा कहा है तथा कृषि आदि आरंभ के त्याग को पांचवीं प्रतिमा कहा है। 7 सोमदेव का यह कथन तार्किक और युक्तियुक्त प्रतीत होता है, क्योंकि सचित्त भोजन और स्त्रीसेवन का त्यागी होने के पश्चात् कोई कृषि आदि आरंभ वाली क्रियाओं को कैसे कर सकता है? इसी कारण उन्होंने आरंभत्याग के स्थान पर सचित्तत्याग और सचित्तत्याग के स्थान पर आरंभत्याग प्रतिमा को कहा है। __ श्री पं. गोविन्द द्वारा प्रणीत पुरुषार्थानशासनगत श्रावकाचार में श्रावक की प्रतिमाओं को क्रम से तथा अक्रम से भी धारण करने का विधान किया गया है, जबकि अन्य सभी श्रावकाचारों में क्रम से ही प्रतिमाओं को धारण करने का स्पष्ट विधान किया गया है। पं. गोविन्द ने कहा है "सदृष्टिः प्रतिमाः काश्चित् क्रमात्काश्चिद्विना क्रमम्। दधदप्येति संविग्नः कतिचिििद्भः भवैः शिवम् ।।"18 अर्थात् कोई दर्शन प्रतिमा का धारक सम्यग्दृष्टि जीव इन प्रतिमाओं को क्रम से धारण करता है और कोई उनको बिना क्रम के भी धारण करता है, फिर भी वह संविग्न श्रावक कुछ भवों में मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। ग्यारह प्रतिमाएँ 1. दर्शन प्रतिमा - जो अतिचाररहित शुद्ध सम्यग्दर्शन का धारक है, संसार,
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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