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________________ 10 अनेकान्त-56/3-4 आरामदेह (Luxery litems) वस्तुओं पर अतिरिक्त कर लगाया जा सकता है। ___ आचार्य जिनसेन ने शासक को अहिंसा के आसन पर आरूढ़ करा है। राजनीति में हिंसा का पुट नहीं होना चाहिये। भरत क्षेत्र के जनपद में आर्य थे साथ ही कुछ उद्दण्ड प्रवृत्ति के लोग (अनाय) भी थे। उस समय यदि शासन सत्ता को केन्द्रीभूत न किया जाता तो राजनीति में संभवतः खून की नदियाँ बहतीं। फलस्वरूप अहिंसामय राजनीति एवं संस्कृति का उदय नहीं हो पाता। राष्ट्र के विकास के लिये सम्राट भरत ने शक्ति को केन्द्रीभूत किया। वैसे तो सभी स्वाधीन व स्वतंत्र थे लेकिन अहिंसक संस्कृति की अभिवृद्धि के लिये प्रत्येक शासक को सम्राट की सत्ता स्वीकार करनी होती थी। भरत की षटखण्ड की विजय धर्मपूर्ण थी और लोकोपकार की भावना से अभिप्रेत थी। सभी स्वाधीन थे लेकिन उद्दण्ड बनकर हिंसक बनने और दूसरे के अधिकार छीनने के लिये स्वतंत्र नहीं थे। युद्ध की नीति एवं विदेश नीति भी अहिंसक थी। युद्ध को टालने का प्रयास किया जाता था। सर्वप्रथम तो युद्ध निहित स्वार्थो के लिये नहीं लड़ा जाता था जनहित के लिए लड़ा जाता था। उसमें भी युद्ध को टालने का प्रयास किया जाता था, फिर भी जनता के हित में लड़ना पड़े तो खूनी संघर्ष नहीं होकर अहिंसक युद्ध ही होता था। जैसा कि भरत व बाहुबली के बीच हुआ। देशों को, शत्रु देशों से शांति समझौता या संधि करनी चाहिये। “युद्ध को टालने का ही प्रयत्न करें क्योंकि युद्ध जन-हानि एवं माल-हानि का कारण है। युद्ध का भविष्य भी बुरा है (अवनति का कारण है) अतः संधि समझौता करना चाहिये।"18 वर्तमान युग की अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति भी शांति व समझौतों पर ही आधारित होनी चाहिये ताकि भविष्य में विश्व युद्ध एवं उससे होने वाले भीषण नरसंहार से बचा जा सके। राजनीति का संरक्षण उचित दण्ड विधान से हो सकता है। यदि राजनीति अहिंसक होगी तो उसकी दण्ड-संहिता भी अहिंसक होनी चाहिये। भटका हुआ
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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