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अनेकान्त-56/3-4
इस प्रकार का राष्ट्र का वर्गीकरण राजनीति को शक्तिशाली बनाने के निमित्त हुआ।
" उत्पादितासयो वर्णास्तदा तेनाधि वेदसाः, क्षत्रिय वणिजः शूद्रा क्षतत्राणादिमुगुणैः।"
राज्य को शक्तिशाली बनाने के निमित्त ही भारत देश में (तत्कालीन भरत क्षेत्र) अनेक नगरों, जनपदों, गाँवों की स्थापना हुई और प्रत्येक का एक-एक शासक नियुक्त हुआ।"
“तदनन्तर कौशल आदि महादेश, अयोध्या आदि नगर, वन, सीमा सहित गाँव और खैडो आदि की रचना की गई।"16 “सुकोशल, अवन्ती, पुण्डु, कुरू, काशी, कलिंग, अंग, बंग आदि देशों की रचना की गई।'' ।
गाँव बसाने के लिये और उपभोग करने वालों के लिये योग्य नियम बनाना, नवीन वस्तु के बनाने (योग) तथा पुरानी वस्तु (क्षेम) की रक्षा के उपाय के लिये 'हा' 'मा' 'धिक' की दण्ड व्यवस्था, लोगों से काम करवाना, जनता से कर वसूल करना यह सब राजाओं के अधीन था। इस प्रकार जनता की रक्षा, उत्पादन में वृद्धि व विकास, दण्ड व न्याय व्यवस्था राजाओं व शासकों द्वारा की जाती थी।
राज्य की व्यवस्था के लिये योग्य धन कैसे मिले इसके लिये कर निर्धारण की व्यवस्था भी शासकों द्वारा लागू की जाती थी। लेकिन टैक्स की वसूली जनता को बिना पीड़ा दिये होनी चाहिये। जैसे दूध दुहने वाली गाय से, बिना पीड़ा दिये दूध दुहा जाता है, उसी प्रकार जनता से कर वसूल किया जाना चाहिये ताकि कर का बोझ जनता पर लादने की नौबत न आये। जनता आसानी से तथा सहजता से कर अदा कर सके। वर्तमान में कर-व्यवस्था एक भार है जनता को कर से इतना अधिक दबा दिया गया है कि अर्थव्यवस्था पंगु बनकर रह गयी है। उसमें गरीब अधिक गरीब तथा अमीर अधिक अमीर बनता चला जा रहा है। आदि पुराण में वर्णित कर व्यवस्था के अनुकूल वर्तमान में दैनिक उपभोग की वस्तुओं पर कर नहीं लगाया जाना चाहिये। हाँ,