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________________ अनेकान्त - 56/1-2 127 चदवार, गोपाचल से ग्वालियर, आरामनगर से आरा, कुसुमपुर अथवा पाटलिपुत्र से पटना, सिंहल से श्रीलंका तथा सिलोन के परिवर्तित नाम भी सही नहीं माने जाने चाहिये क्योंकि उन समादरणीय विद्वानों की दृष्टि से Proper Noun मे कोई परिवर्तन ही नहीं हो सकता । ईसा पूर्व दूसरी सदी में कलिग के जैन चक्रवर्ती सम्राट खारवेल का उल्लेख यदि जैन साहित्य में कहीं नहीं मिलता और अजैन इतिहासकारों ने उसके शिलालेख की अथक खोज कर सम्राट खारवेल के जैनधर्म सम्बन्धी बहुआयामी कार्य-कलापों की विस्तृत चर्चा की और इसके साथ ही अन्धकारयुगीन प्राच्य भारतीय इतिहास के लेखन के लिये डॉ. आर. डी. बनर्जी ने उसे प्रथम प्रकाश-द्वार घोषित किया, तो क्या इस गहन खोज के लिये भी केवल इसीलिये नकार दिया जाय, क्योकि प्राचीन जैन साहित्य में उसका कही भी उल्लेख नही मिलता और वह केवल जैनेतर इतिहासकारो की खोज एव प्रारम्भ में उन्ही के द्वारा उसका किया गया मूल्याकन प्रकाश में आया है। वस्तुतः लच्छेदार - भाषा मे अपने इतिहास - विरुद्ध भ्रामक विचारो को प्रस्तुत करना शब्दो की कलाबाजी का प्रदर्शन मात्र ही है। इससे प्राचीन इतिहास भ्रम के कुहरे मे कुछ समय के लिये भले ही धूमिल पड़ जाए, किन्तु उसके शाश्वत रूप को कभी भी मिटाया नही जा सकता। नालन्दा स्थित कुण्डलपुर को जन्म-स्थली मानने वाले हमारे कुछ आदरणीय विद्वान् अपने ही प्राचीन दिगम्बराचार्यो के कथन को तोड़-मरोड़ कर तथा उनके भ्रामक अर्थ करके उनके वास्तविक इतिहास को अस्वीकार कर समाज में भ्रम उत्पन्न कर रहे है। उन्होंने श्वेताम्बर साहित्य, बौद्ध साहित्य एव पुरातात्विक प्रमाणो को भी अप्रामाणिक घोषित कर शंखनाद किया है कि उनकी मान्यता मानने वाले “अज्ञानी" हैं तथा आगम-विरोधी । इसी क्रोधावेश में वे उन पर कही कोई कोर्ट केस भी दायर न करे दे? विदेह - वैशाली स्थित कुण्डलुपर को भगवान महावीर की जन्म स्थली सिद्ध करने वाले अनेक सप्रमाण लेख " भगवान महावीर स्मृति- तीर्थ- समारिका (पटना), वर्धमान महावीर स्मृति ग्रन्थ (दिल्ली), जैन सन्देश (मथुरा)
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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