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________________ अनेकान्त/55/1 49 निर्मल मनोवृत्ति का तो घात करता ही रहता है। अतः स्वप्राणघातरूप प्राणव्यपरोपण भी पाया जाता है। स्वप्राणघात महा पाप ही है. हिंसा को दोष तो है ही। यह निश्चित है कि हिंसा और अहिंसा भावों की अपेक्षा अवश्य रखती है। जैसा कि आचार्य अमृतचन्द्रसूरि ने भी लिखा है "पर पदार्थ के निमित्त से मनुष्य को हिंसा का रंच मात्र भी दोष नहीं लगता, फिर भी हिंसा के आयतनों की निवृत्ति परिणामों की निर्मलता के लिए करनी चाहिए" इससे स्पष्ट होता है कि हिंसा का अन्वय-व्यतिरेक अशुद्ध तथा शुद्ध परिणामों के साथ है। परिणाम/भाव पूर्ण अहिंसा के मुख्य रूप से साधक हैं क्योंकि बिना भाव अहिंसा के द्रव्य अहिंसा का पूर्ण पालक साधक मुक्ति प्राप्त नही कर पाता है, पं. आशाधर जी भो समझाते हैं “यदि भाव के अधीन बन्ध मोक्ष की व्यवस्था न मानी जाय, तो संसार का वह कौन सा भाग होगा, जहाँ पहुँच मुमुक्षु पूर्ण अहिंसक बनने की साधना को पूर्ण करते हुए निर्वाण लाभ करेगा? इससे स्पष्ट है कि लोक को कोई भी भाग ऐसा नहीं है, जहाँ पूर्णद्रव्य अहिंसक रह सके क्योंकि प्रत्येक स्थान पर जीव राशि है किन्तु साधना के फलस्वरूप साधक पूर्ण रूप से भाव अहिंसा का पालन कर ही परम लक्ष्य सिद्ध कर लेता है। गृहस्थ भाव अहिंसा का पूर्ण पालन नहीं कर सकता। वह केवल त्रस प्राणियों की हिंसा से विरत होता है। वह निरपराध प्राणियों को मन, वचन और काय स न स्वंव मारता है और न दूसरो से मरवाता है। वह ऐसी कोई भी प्रवृत्ति नहीं करता/करवाता है, जिससे स्थूलहिंसा की संभावना हो। __ अहिंसक गृहस्थ बिना प्रयोजन संकल्पपूर्वक तुच्छ प्राणी को कष्ट नही पहुँचाता है किन्तु धर्म, समाज, परिवार की रक्षा हेतु या किसी विशिष्ट कर्तव्यपालन हेतु न्यायवान् होकर अस्त्र-शस्त्र के प्रयोग करने से भी मुख नही मोड़ता है। आचार्य सोमदेव ने भी गृहस्थों को विरोधी हिंसा में दोष नहीं कहा। विरोधी हिंसा उस समय होती है, जब अपने ऊपर आक्रमण करने वाले पर आत्मरक्षार्थ शस्त्रादि का प्रयोग करना आवश्यक होता है, जैसे अन्यायवृत्ति से कोई दूसरे राष्ट्रवाला अपने देश पर आक्रमण करे, उस समय अपने आश्रितो की रक्षा के लिए संग्राम में प्रवृत्ति करना, उसमें होने वाली हिंसा विरोधी हिंसा
SR No.538055
Book TitleAnekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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