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________________ 26 अनेकान्त/55/1 एवम् वीर सेवा मन्दिर, नई दिल्ली आदि संस्थाओं से आप सम्बद्ध रहे। इसके अतिरिक्त श्री भा.व.दि. जैन संघ मथुरा में प्रचार कार्यार्थ भी आप नियुक्त हुए। उक्त संस्थाओं में कार्य करते हुए प्राचीन जैन साहित्य के अध्ययन में अपनी गहन अभिरुचि के कारण आप निरन्तर ज्ञानाराधन के पुण्य कार्य में सदा निरत रहे। यहाँ ज्ञातव्य है कि आपने जिन संस्थाओं में अपनी सेवाएँ प्रदान की, सभी संस्थाएँ समाज द्वारा संचालित थी। सामाजिक संस्थाओं में कार्यरत विद्वानों को किन-किन कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है, भुक्तभोगी एवम् तटस्थ विज्ञजन जानते हैं। इन संस्थाओं में कर्मचारियों को अपने सेवा कर्म के साथ संस्था के पदाधिकारियों की ख्याति-लाभादि की अपेक्षा का ध्यान भी रखना पड़ता है। कर्मचारियों के कार्य परिश्रम का मूल्यांकन उनकी योग्यता एवम् निष्ठा के आधार पर नहीं, अधिकारियों से उनकी अनुकूलता के आधार पर किया जाता है। यहाँ पर दिया जाने वाला कम वेतन कर्मचारि विद्वान् को तन से बेखबर होकर कार्य करने को मजबूर करता है। इन सब प्रकार की घोर कठिनाईयों आपदाओं को झेलते हुए और पारिवारिक आवश्यकताओं और अपेक्षाओं के प्रहारों का मुकाबला करना पड़ता है। इन सब विसंगतियों के कारण पं. श्री शास्त्री जी अपनी स्वाभिमानी वृत्ति एवम् स्पष्टवादिता के कारण संस्थाधिकारियों के प्रभाजन बने, परन्तु आपने जीवन शैली से कभी समझौता नहीं किया। यही कारण है कि उन्हें किसी भी सेवा में दीर्घकालिक स्थायित्व नहीं मिल सका, उन्हें अनेक स्थानों पर सेवार्थ जाना पड़ा। उनकी स्पष्टवादिता का एक उदाहरण, जो उनके ही मुख से सुना था, यहाँ प्रस्तुत है। पण्डित श्री शास्त्री जी, उज्जैन में सेठ लालचन्द्र जी सेठी के यहाँ उनके परिवार को धार्मिक अध्ययनार्थ एवं मन्दिर जी में शास्त्र सभा करने हेतु नियुक्त थे। उन दिनों सेठ सा. का उनकी सामाजिक सेवाओं के लिये नागरिक अभिनन्दन समारोह का आयोजन था। सेठ सा. के व्यक्तित्त्व पर प्रकाश डालने हेतु आपका नाम भी वक्ताओं की सूची में था। आपने सेठजी का परिचय देते हुए भरी सभा में कहा, यदि सेठ सा. के व्यक्तित्व के विविध पक्षों पर यदि मूल्याङ्कन करते हुए मैं आपको प्रबन्धकीय क्षमता में 90/100, व्यवसाय दक्षता
SR No.538055
Book TitleAnekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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