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अनेकान्त/55/2
की जाती थी। विवाह व्यवस्था थी (2.9.10) भवदेव को नागवसु से विवाह, जंबूस्वामी का चार कन्याओं से विवाह। कवि ने उस युग के ग्राम जीवन व नगरीय जीवन की भी चर्चा की है। नगरों में ऊँचे गवाक्ष युक्त प्रासाद, ऊँचे देवालय, दानशालायें (3.3.1) द्यूत गृह (8.3.13) वेश्या गृह (3.2.5-6) आदि थे। ग्राम्य जीवन की झलक मगध के 'वर्धमान' गाँव के प्रसंग में मिलता है। यहां की रमणियां बहुत सुन्दर थी। ब्राह्मण समूह मिलकर वेद पाठ करते थे। नवदीक्षित पुरोहित पशुहोम करते थे और प्रतिदिन खूब सोम पान करते। यहां बड़े-बड़े सरोवर थे। महुए के वृक्ष बहुतायत से पाए जाते थे। धान की खेती होती थी। नागरिक श्रद्धालु और सम्पन्न थे। साधारण दरिद्रों के जीवन का भी चित्रण कवि की इस कृति में मिलता है। कवि के द्वारा दी गई समकालीन ऐतिहासिक घटनाएँ भी तत्कालीन इतिहास पर अच्छा प्रकाश डालती है। कुल मिलाकर यह एक श्रेष्ठ कृति है।
सन्दर्भ सूची
(1) कामता प्रसाद जैन, 'हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास',
(2) 'जबुसामि चरिउ' प्रशस्ति, पद्य सं. 2 पृष्ठ स 232, (3) वही, पद्य सं. 5. पृष्ठ स 232, (4) 'जंबुसामि चरिउ', प्रस्तावना, पृष्ठ स. 16-17. (5) वही, प्रस्तावना, पृष्ठ सं. 35, (6) 'जबुसामि चरिउ' प्रशस्ति पद्य सं 6-8, पृ स. 232, (7) वही, 2.3.3, (8) वही, वही, (9) वही, 1.343, 3.121-233, 5.8.33-34, (10) वही, 5.8.31-32, (11) वही, 31.3-4, (12) वही, प्रस्तावना पृ. सं. 92, (13) वही, 4.17-18, (14) वही, 8.7, 9.14 (15) वही 2.66, (16) वही, 2.1, (17) वही, 6.75-7, 6; 10.4; 1 4; 7.1.9-22, (18) वही, 10.26.1-4, (19) वही, 2.62.7,3.24-9, (20) वही 4 16.11-12
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