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________________ अनेकान्त/55/2 की रचना किसी एक शैली में नही हुई। दूसरी संधि का अधिकांश भाग जहाँ वैदर्मी शैली में है, तो जंबुस्वामी की माता के सपने, वसन्त आगमन पर उद्यान का सौन्दर्य तथा तीसरी संधि का अधिकांश भाग वैदर्भी की और झुकती हुई पांचाली शैली में है। इसी प्रकार हाथी का उपद्रव, युद्ध एवं विद्युच्चर का देशदर्शन गौडी रीति में रचा गया है। कवि ने अपनी इस कृति में सुभाषित और लोकोक्तियों का भी सुन्दर प्रयोग किया है। कुछ उदाहरण देखिये-चन्द्रमा की किरण कौन छू सकता है। (5.4.12); सूर्य के घोड़े की गति को कौन रोक सकता है। (5.5.1); यमराज के भैंसे के सींग को कौन उखाड़ सकता है। (3.5.2) यही नहीं, कवि ने कहावतों का भी सुन्दर प्रयोग किया है। मूर्ख किसान (9.4), विद्याधर (9.6), सर्प (9. 10) आदि प्रसंगों में उस की यह कला द्रष्टव्य है। कवि की 'जंबुसामि चरिउ' नामक इस कृति में महाकाव्य के सभी लक्षण-इतिवृत्ति, वस्तु व्यापार वर्णन, संवाद एवं भाव व्यंजना ये चारों अवयव सन्तुलित रूप में घटित हुये है। कवि ने जीवन की समग्रता का चित्रण कई जन्मों की कहानी का आलम्बन लेकर किया है। कृति की भाषा व्याकरण सम्मत अपभ्रंश है। इस में संस्कृत और प्राकृत के शब्द ही नहीं मिलते, बल्कि पहली संधि के अन्त में संस्कृत के कुछ श्लोक तथा पाँचवी संधि के 11वें कडवक में एक आर्या मिलती है। प्राकृत की तो अनेक गाथाएँ ही प्रत्येक संधि के प्रारम्भ में मिल जाती हैं। संक्षेप में इसमें श्रुति मधुर शब्द, अर्थ गाम्भीर्य (1.2.1, 8.18) अर्थगत स्पष्टता और अर्थ सौन्दर्य (7.14) आदि कई विशेषतायें देखने को मिलती है। अपनी इस कृति में कवि ने तत्कालीन धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति का भी वर्णन किया है। धर्म के नाम पर यज्ञों में पशुबलि दी जाती थी। लोगों की तंत्र-मंत्र में आस्था थी। समाज में विभिन्न वर्णो के द्वारा संपादित किये जाने वाले कार्यो की चर्चा करते हुये कवि ने ब्राह्मणों को वैदिक साहित्य का अध्ययन करने वाला कहा है, क्षत्रियों का मुख्य कार्य युद्ध में लड़ना था, वैश्यों का मुख्य व्यवसाय-व्यापार या वाणिज्य था। उस समय जल और थल दोनों ही मार्गों से व्यापार होता था। (8.3.9) 'जंबुसामि चरिउ' में 'शूद्र' का उल्लेख न होकर एक अन्तर कथा (10.12.27) में मेहतर के लिये कर्म कार/कर्मकर, शब्द आया है (10.15-27)। शिक्षा गुरुगृह में रहकर ही प्राप्त
SR No.538055
Book TitleAnekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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