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अनेकान्त/54-1
सोनगढ़ मिशन के पर्दे के पीछे के एजेण्डे के विषय में प्राय: सब जानते
और समझते हैं कि उनकी प्रवृत्तियां दिगम्बर जैर परम्परा विघातक हैं। उनके कुछ स्थल द्रष्टव्य हैं - ___ -'गुरुदेव के ही मुख से अनेक बार आनन्दकारी उद्गार सुने हैं कि मेरा यह भव तीर्थंकर प्रकृति का बंध होने से पूर्व का भव है, अर्थात् जब अगले मनुष्यभव में तीर्थकर प्रकृति का बंध होगा, साक्षात् तीर्थकर भगवान् के समवसरण में पूज्य बहिन श्री चम्पा बहिन ने यह बात सुनी है--आत्मधर्म मई 1976 जन्म जयन्ती पृ. 24
-मैं तीर्थकर हूँ, ऐसा अन्तर में भासित होता था, परन्तु उसका अर्थ अब समझ में आया कि मैं तीर्थकर का जीव हूँ, तुम्हारे (चम्पा बहिन के) निर्मल जाति-स्मरण ज्ञान से उस आभास का भेद आज स्पष्ट हुआ है।
___ -आत्मधर्म 1976 पृ. 20 (जन्मजयन्ती अंक) - 'परमपूज्य गुरुदेव का जीव गत पूर्वभव में जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में राजकुमार था, चम्पा बहिन का गत पूर्व भव में देवराज नाम का श्रेष्ठी पुत्र था, यह राजकुमार भविष्य में धातकी खण्ड में सूर्यकीर्ति के नाम के तीर्थकर होंगें, यह बात भगवान की दिव्यध्वनि में प्रत्यक्ष सुनी थी, यह जाति स्मरण में आया है।'
-आत्मधर्म पृष्ठ 10, जन्मजयन्ती बम्बई अंक जिनवाणी के विषय में - - श्री वीतराग की वाणी का श्रवण भी पर विषय और स्त्री भी परविषय है। ज्ञानी की किसी भी पर विषय में रुचि नहीं है, वीतराग की वाणी के श्रवण की भी भावना ज्ञानी की नहीं है, अज्ञानी जीव स्त्री को बुरा और भगवान् की वाणी को अच्छा मानकर पर-विषय में भेद करता है। ___ -मोक्षमार्ग प्रकाशक की किरण-प्रथम भाग तीसरा अध्याय पृ. 80 दिगम्बर साधुओं के विषय में - - 'आजकल जगत में त्याग के नाम पर अन्धाधुन्धी चल रही है कुंजड़े काछी जैसों ने भटे-भाजी की तरह व्रतों का मूल्य कर दिया है।' SRCISSOCIEOCORNEROILASSOCIENCaCOcs