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________________ अनेकान्त/54-1 कल के भिखारी ने आज वेष बदल लिया, स्त्री व कुटुम्ब को छोड़ दिया, तो क्या वह त्यागी हो गए? सबने मिलकर त्यागी मान लिया तो क्या बाह्य संयोग-वियोग से त्याग है। अन्तरंग में कुछ परिवर्तन हुआ या नहीं, वह तो देख। बाहर से दिखाई देता है कि अहो कैसा त्यागी है, स्त्री नहीं, बच्चे नहीं, जंगल में रहता है। ऐसे बाह्य त्याग को देखकर बड़ा मानते हैं, लेकिन त्याग का क्या स्वरूप है यह नहीं समझते। -समयसार प्रवचन पृष्ठ 13, 11 श्रावक के 12 व्रत और मुनियों के 5 महाव्रत भी विकार हैं- समयसार प्रवचन भाग - 3 पृष्ठ 12 तप एवं परीषह के सन्दर्भ में लोग मानते हैं कि खाना पीना छोड़ दिया इसलिए तप हो गया और निर्जरा हो गई, उपवास करके शरीर को सुखा लिया इसलिए अन्दर धर्म हुआ होगा। इस प्रकार शरीर की दशा से धर्म को नापते हैं। धर्म के सन्दर्भ में 7 - बाह्य तप परीषह इत्यादि क्रियाओं से मानता है कि मैंने सहन किया है। इसलिए मुझमें धर्म होगा, किन्तु उसकी दृष्टि बाह्य में है इसलिए धर्म नहीं हो सकता। - समयसार प्रवचन पृ. 308 - 1 जो शरीर की क्रिया से धर्म मानता है सो तो बिल्कुल बाह्य दृष्टि मिथ्यादृष्टि है, किन्तु यहाँ तो पुण्य से भी जो धर्म मानता है, सो भी मिथ्यादृष्टि है। जितनी परजीव की दया, दान, व्रत पूजा भक्ति इत्यादि की शुभ लगन या हिंसादिक की अशुभ लगन उठती है वह सब अधर्म भाव है। - आत्मधर्म पृष्ठ 10, अंक 1, वर्ष 4 श्रावकोचित कर्तव्यों के प्रति कोई यह मत मानते हैं कि दान-पूजा तथा यात्रा आदि से धर्म होता है और शरीर की क्रिया से धर्म होता है यह मान्यता मिथ्या है। - आत्मधर्म अंक 5, वर्ष 3 scoca
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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