________________
अनेकान्त/54-1
तीर्थयात्रा के विषय में - - सम्मेदशिखर, गिरनार आदि की यात्रा से धर्म होता है, ऐसा मानने वाला मिथ्यादृष्टि है।
-मोक्षमार्ग प्रकाशक किरण पृ. 170 शुभ-भावों के विषय में - - दान पूजा आदि शुभ भावों से धर्म मानना त्रिकाल मिथ्यात्त्व है।
-समयसार प्रवचन भाग 2 पृष्ठ 6 शास्त्रों के विषय में - - महाव्रत, दान, दया आदि का प्ररूपण करने वाले शास्त्र कुशास्त्र हैं।
__-छहढाला ढाला-2 पद्य-13 (सोनगढ़ प्रकाशित) ये कुछ उदाहरण हैं-कहानपंथ के, जिनमें परम्परागत आचार्यों द्वारा स्थापित चिरन्तन शाश्वत मूल्यों को नेस्तनाबूद करने की कोशिश की गई है। कहानपंथ के विषय में आचार्यश्री विद्यानन्द जी ने जो सामयिक टिप्पणी की थी और ‘दिगम्बर जैन साहित्य में विकार' पुस्तक में कहानपंथ के विषय में पोस्टमार्टम करते हुए श्रावकजनों का मार्ग प्रशस्त किया था, वह आज भी सामयिक है। उन्होंने लिखा था___ "ये लोग निश्चय एकान्तवादी मिथ्यादृष्टि हैं। इनके शास्त्र कल्याणकारी न होकर घातक कुशास्त्र हैं। उनका पठन-पाठन क्या, अवलोकन तक नहीं करना चाहिए। उन्हें स्वाध्याय मण्डलों में तथा जिनमंदिरों में नहीं रखना चाहिए। कहानजी ने विकृत साहित्य लिखकर दण्डनीय अपराध किया है और समाज में भ्रामक स्थिति पैदा कर दी है। सोनगढ़ से प्रकाशित साहित्य आर्ष परम्परा के विरुद्ध है।"
- मुनि विद्यानन्द
(सोनगढ समीक्षा पृ 56-57) उस समय अनेक आचार्यों ने सोनगढ़ मिशन के तहत चल रहे कार्यो का पुरजोर विरोध किया था। आचार्य देशभूषणजी ने ऐसे साहित्य को दिगम्बर जैन मन्दिर से बहिष्कृत किए जाने को उचित ठहराया था अन्य