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________________ अनेकान्त/54-1 हालांकि उनकी सोच में कोई अन्तर नहीं आया है और न ही उनकी श्रद्धा आचार्य के प्रति है। वे तो किसी तरह घुसना चाहते हैं। यही उनका एकमात्र मिशन है। समय की गति बड़ी विचित्र होती है। दुर्भाग्य से 'अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत् परिषद्, जैसी संस्था को कुछ स्वार्थान्ध लोगों ने तोड़ने का षड्यन्त्र रचा तो मौका ताड़कर सोनगढ़ के इस प्रतिनिधि ने उसे हवा ही नहीं दी, वरन् उसके संरक्षक भी बन बैठे। वित्तीय संरक्षण के साथ-साथ अपने कम्यून का पूरा समर्थन भी उसे दिला दिया। इस प्रकार इस मंच के माध्यम से मुमुक्षुमण्डल और सोनगढ़ मिशन को ऊर्जा भी मिली और स्वार्थान्ध लोगों को संतुष्टि। अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत् परिषद् ने फिरोजाबाद अधिवेशन में सोनगढ़ के पाखण्ड का विरोध किया था और मूडबिद्री के भट्टारक श्री चारूकीर्ति स्वामी ने सोनगढ़ द्वारा किए जा रहे प्रयासों को 'इतिहास की सबसे बड़ी डकैती' की सज्ञा दी थी। प्रस्ताव निम्नलिखित था। _ 'अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद का यह पन्द्रहवां अधिवेशन दिगम्बर जैन स्वाध्याय मन्दिर ट्रस्ट सोनगढ़ द्वारा तथाकथित भावी तीर्थकर 'सूर्यकीर्ति' के नाम से जो मूर्ति स्थापित की गयी है, उसे कपोल-कल्पित एवं दिगम्बर परम्परा तथा आगम के प्रतिकूल घोषित करती हुई, इस कार्य को मिथ्यात्त्व प्रेरित और मिथ्यात्त्ववर्द्धक मानती है तथा इसकी निन्दा करती है।' प्रस्तावक-नीरज जैन 27.5.85 समर्थक-लक्ष्मीचन्द जैन, भारतीय ज्ञानपीठ अनुमोदक भट्टारक चारुकीर्ति मूडबिन्द्री भट्टारक चारुकीर्ति श्रवणबेलगोला इस प्रस्ताव के समर्थक विद्वत् समूह के कतिपय लोगों का सोनगढ़ मिशन के प्रतिनिधि की गोद में बैठ जाना आश्चर्य का विषय है और आश्चर्य है कि गत दिनों उन्हीं विद्वत् समूह को श्रवणबेलगोला के भट्टारक जी द्वारा बहुमान देना और भी विस्मय उत्पन्न करता है। जबकि
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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