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________________ 58 अनेकान्त/54-1 यदि श्री शर्मा भागवत के पंचम स्कंध के पांचवें अध्याय के 19वें श्लोक के गोरखपुर संस्करण के हिन्दी अनुवाद को ही देख लेते, तो उन्हें यह जानकारी मिलती "मेरे इस अवतार शरीर का रहस्य साधारण जनों के लिए बुद्धिगम्य नहीं है। शुद्ध सत्व ही मेरा हृदय है और उसी में धर्म की स्थिति है। मैंने अधर्म को अपने से बहुत दूर पीछे ही ओर ढकेल दिया है। इसी से सत्पुरुष मुझे 'ऋषभ' कहते हैं।" ये शब्द भागवतकार ने पुत्रों को उपदेश देते समय ऋषभ से कहलवाये हैं। वैदिक कोष में भी उन्हें ऋषभ के अर्थ 'विज्ञानवान (परमयोगी), उत्कृष्ट गुणकर्म स्वभावस्य राज्ञः तथा अनंतबल: (परमात्मा)' आदि अर्थ विद्वान लेखक को मिल जाते। हलायुध कोष में ऋषभ को आदिजिनः अवतारविशेषः कहा गया है। 4. जनपद राज्य-शैशुनाक वंश ईसा से छटी शताब्दी पूर्व में सोलह महाजनपद थे। उनकी जानकारी के संबंध में श्री शर्मा ने यह नहीं बताया कि उनके संबंध में जैन ग्रथों से सबसे अधिक सूचना प्राप्त हुई है। किन्तु बुद्ध काल में नगरों के संबंध में उनकी सूचना है कि "पालि और संस्कृत ग्रंथों में उल्लिखित अनेक नगरों को खोद (किसने?) निकाला गया है, जैसे कौशाम्बी, श्रावस्ती, अयोध्या, कपिलवस्तु, वाराणसी, वैशाली, राजगीर, पाटलिपुत्र और चम्पा।" कपिलवस्तु को छोड़कर अन्य सभी स्थान जैन ग्रंथों में अधिक चर्चित एवं वंदनीय माने गए हैं। बिंबिसार और अजातशत्रु बुद्ध के सामने नतमस्तक हुए थे यह श्री शर्मा का कथन है। किंतु बिंबिसार महावीर का परम श्रोता था। महावीर की माता त्रिशला वैशाली गणतंत्र के अध्यक्ष चेटक की पुत्री थीं। त्रिशला की बहिन चेलना का विवाह बिंबिसार से हुआ था। बिंबिसार ने महावीर से जो प्रश्न किए, उनसे जैन पुराण भरे पड़े हैं। किंतु श्री शर्मा ने यह लिख दिया कि उस समय का राजा "बुद्ध जैसे धार्मिक महापुरुषों के आगे ही नतमस्तक होता था...बिंबिसार और अजातशत्रु इसके अच्छे उदाहरण हैं।" किंतु बिंबिसार तो बुद्ध द्वारा अपने धर्म का प्रचार करने से पहले ही महावीर का अनुयायी हो चुका था। (डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन, भारतीय इतिहास-एक दृष्टि, पृ. 63)
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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