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अनेकान्त/54-1
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जहां तक अजातशत्रु का प्रश्न है, वह तो बुद्ध से यह पूछने गया था कि किस प्रकार वह वृज्जि, विदेह और वैशाली गणतंत्रों पर विजय पा सकता है। गौतम बुद्ध ने इन गणतंत्रों की सात विशेषताएं अपने शिष्य आनंद को लक्ष्य कर बताईं। उनमें यह भी थी कि जब तक ये मिलकर काम करते रहेंगे, तब तक वे वृद्धि को प्राप्त होंगे। अजातशत्रु को मंत्र मिल गया और उसने इन गणतंत्रों को अपने राज्य में मिला लिया। यह विजेता भी जैन था। किंतु बौद्ध परंपरा से बाद में जोड़ दिया गया बताया जाता है। उसने कोई बौद्ध स्मारक बनाया हो ऐसा नहीं लगता। 5. “बुद्धकाल में राज्य और वर्ण-समाज" __यह तो संभवतः सभी जानते हैं कि ईसा पूर्व छटी शताब्दी महावीर
और गौतम बुद्ध का युग था और दोनों ने ही वर्ण-व्यवस्था का विरोध किया था किन्तु श्री शर्मा ने अध्याय 13 में यह मत व्यक्त किया है कि इस युग में "वर्ण व्यवस्था की गई और हर एक वर्ण का कर्तव्य (पेशा) स्पष्ट रीति से निर्धारित कर दिया गया।" पृ. 126। इस कथन से बढ़ कर तथ्य-विरोध और क्या हो सकता है? एक इतिहासकार के अनुसार तो उस समय बुद्ध के बहुत ही कम अनुयायी थे। वास्तव में, वह महावीर का युग था। वे बुद्ध से ज्येष्ठ थे और बुद्ध से पहले ही अपने श्रमण धर्म का प्रचार प्रारंभ कर चुके थे। अच्छा होता कि इस अध्याय का नाम महावीर युग की स्थिति होता। यदि बुद्ध के प्रति आग्रह ही था, तो महावीर-बुद्ध युग शीर्षक हो सकता था किन्तु लेखक का उद्देश्य तो वर्ण व्यवस्था की श्रेष्ठता बताना संभवतः था। 6. वैशाली गणतंत्र
श्री शर्मा ने वैशाली गणतंत्र के प्रशासन तंत्र की चर्चा की है। किन्तु एक बार भी 'वैशाली गणतंत्र' समस्त पद का प्रयोग नहीं किया है। शायद उन्होंने यह विद्यार्थियों पर छोड़ दिया है कि वे अनुमान कर लें कि वैशाली नाम का कोई गणतंत्र भी था। श्री काशीप्रसाद जायसवाल ने उसे "Recorded Republics" में गणित किया है। उसका विस्तृत वर्णन बौद्ध साहित्य में उपलब्ध है। बुद्ध ने अंतिम वैशाली दर्शन के समय हाथी की भांति मुड़ते हुए अपने शिष्य आनंद से कहा था कि वह उनके संघ का संगठन वैशाली जैसा करे। श्री दिनकर ने वैशाली को "संसदों की जननी" कहा है। यह गणतंत्र विश्व का सबसे प्राचीन गणतंत्र माना जाता है जिसका लिखित विवरण उपलब्ध है। cacacacacacacacacacc0000OCODSEODOES