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________________ अनेकान्त/54-1 वे ध्यान से देखते, तो ऐसा नहीं लिखते। इस सील में तीर्थकर योग अवस्था में ध्यानमग्न है। उनके एक ओर हाथी और बाघ हैं। दूसरी ओर गैंडा है। पाठक समझ सकते हैं कि ये परस्पर बैरी या विरोधी जीव हैं किन्तु अपने बैर को भूलकर वे शांत भाव से बैठे हैं। योगी के आसन के नीचे दो हिरण बिना किसी भय के स्थित हैं। यह तीर्थकर की उपदेश सभा में जिसे समवसरण कहते है, संभव होता है। कुछ जैन मंदिरों में शेर और गाय को एक ही पात्र से पानी पीते हए अंकित देखा जा सकता है। ऐसी एक घटना एक अंग्रेज शिकारी के साथ चटगांव में हुई थी। जब उसके हाथी ने शेर के आने पर उसे नीचे पटक दिया, तब शिकारी भागकर एक मुनि के पास जा बैठा। शेर आया किन्तु अपने शिकार के लिए आए शत्रु को बिना हानि पहुंचाए लौट गया। वैसे पशुपति में 'पश' शब्द का अर्थ ही गलत लगाया जाता है। उसका अर्थ देह या आत्मा है। जिसने इन्हें अपने वश में कर लिया, वही पशुपतिनाथ कहा जा सकता है। संस्कृत शब्दों का अर्थ प्रसंगानुसार करना ही उचित होता है। इस प्रकार का एक और उदाहरण पशु संबंधी यहां दिया जाता है। "ऋषभो वा पशुनामाधिपतिः (ता. वा. 14-2-5) तथा "ऋषभो वा पशुनां प्रजापतिः (शत. ब्रा. 5,12-5-17) संख्यात्मक संदर्भ प्रस्तुत लेखक ने कैलाशचंदजी की पुस्तक (पृ. 109) से लिए हैं। यदि यहां पशु का अर्थ animal से लिया जाए, और ऋषभ से बैल (जैसा कि श्री शर्मा करते हैं, तो क्रमशः 'बैल पशुओं का राजा है' (शेर का क्या होगा?) और 'बैल पशुओं का प्रजापति है' यह बात गोता खा जाने की बन गई। यदि पशु का अर्थ मनुष्य या देहधारी किया जाए और ऋषभ से ऋषभदेव किया जाए, तो मतलब निकलेगा ऋषभदेव मानवों के राजा थे। यह जैन मान्यता है। दूसरे का आशय भी इसी प्रकार ऋषभदेव देहधारियों के प्रजापति थे यह होगा। जैन मान्यता है कि जब कल्पवृक्षों से मानवों की आवश्यकताएं पूरी होना कठिन हो गया, तब उस समय के मनुष्य ऋषभ के पास जीविका के उपाय पूछने गए तथा उनसे अपना अधिपति या राजा बनने की प्रार्थना की जो ऋषभ ने स्वीकार कर ली और उन्हें असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प कार्यों से जीविका करने का उपदेश दिया। लोगों ने उनसे अपना शासक बनने की प्रार्थना की थी, इसलिए वे प्रजापति कहलाए। यहां यही संकेत जान पड़ता है और अर्थ भी ठीक बैठ जाता है।
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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