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________________ अनेकान्त / 54-1 09090 प्राचीन भारत पुस्तक में कुछ और भ्रामक कथन 53 ७१ राजमल जैन उपर्युक्त पुस्तक की सामग्री का अध्ययन करने से यह तथ्य सामने आया है कि लेखक ने अनेक भ्रामक बातें प्राचीन इतिहास में जैन योगदान के संबंध में लिखी हैं या उन्हें ओझल कर दिया है जो कि किशोर विद्यार्थियों को भ्रम में डाल सकती हैं। ऐसी कुछ बातों के संबंध NCERT तथा विद्वानों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया जाता है। 1. वैदिक भरत के नाम पर भारतवर्ष नहीं श्री वासुदेव शरण अग्रवाल, अध्यक्ष, भारत विद्या विभाग, बनारस विश्वविद्यालय ने भरत से भारत की तीन व्युत्पत्तियां बताई थीं। एक तो अग्नि (भरत) से, दूसरी दुष्यन्त के पुत्र भरत से और तीसरी मनु (भरत) से। विचाराधीन पुस्तक के दूसरे ही पृष्ठ पर श्री शर्मा ने लिखा है- " भारत के लोग एकता के लिए प्रयत्नशील रहे। उन्होंने इस विशाल उपमहाद्वीप को एक अखण्ड देश समझा। सारे देश को भरत नामक एक प्राचीन वेश के नाम पर भारतवर्ष (अर्थात् भरतों का देश ) नाम दिया और इस देश के निवासियों को भारतसन्तति कहा । " उपर्युक्त लेखक ने अप्रत्यक्ष रूप से यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि वेदों में भरत नाम आया है और उसी के नाम पर यह देश भारत कहलाता है। यह नाम किसे दिया गया, यह उन्होंने स्पष्ट नहीं किया। वेदों में अग्नि को भरत कहा गया है क्योंकि वह अन्न आदि पकाने में सहायक होने के कारण सब का भरण करती है। इस प्रकार अग्नि के नाम भरत को यह श्रेय दिया जाता है कि इस कल्पित भरत के नाम पर यह देश भारत कहलाता है। अग्नि के संबंध में श्री अग्रवाल ने लिखा था, " ऋग्वेद में ही अग्नि को भारत कहा गया है... अग्नि भरत है क्योंकि वह प्रजाओं को भरता है।
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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