SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 52 उपमा के भेद-प्रभेद निरूपण के पश्चात् आचार्य अजितसेन ने उपमा में प्रयोग करने योग्य सादृश्यवाचक शब्दों का परिगणन किया है- इव, वा, यथा, समान, निभ, तुल्य, संकाश, नीकाश, प्रतिरूपक, प्रतिपक्ष, प्रतिद्वन्द्व, प्रत्यनीक, विरोधी, सदृक्, सदृक्ष, सदृश, सम, संवादि, सजातीय, अनुवादि, प्रतिबिम्ब, प्रतिचछन्द, सरूप, संमित, सलक्षणभ, सपक्ष, प्रख्य, प्रतिनिधि, सवर्ण, तुलित शब्द और कल्प, देशीय, देश्य, वत् इत्यादि प्रत्ययान्त चन्द्रप्रभादि शब्दों में समास का ।' अनेकान्त / 54-1 ०००००० इस प्रकार अजितसेन ने उपमा का बहुत विस्तार के साथ विवेचन किया है। यह विवेचन अन्य अलंकार ग्रन्थों से भिन्न न होने पर भी विशिष्ट अवश्य है। सन्दर्भ 1. अभ्रातेव पुंस एति प्रतीची गर्तीरुगिव सनये धनानाम् । जायेव पत्य उशती मुवासा उषा हस्तेव निर्णीते अप्सः । ऋग्वेद 8-2-342 2. इदमिव । इदं यथा । अग्निर्न ये। चतुश्चिद् ददमानात् । ब्राह्मण ब्रतचारिणः । वृक्षस्य नु ते पुरुहुतः वयाः । जार आ. भगम् । मेषो भूतो३भियत्रयः । तद्रूपः । तदवर्णः । तद्वत्। तथेत्युपमा।।13।। तृतीयोऽध्यायः । 3. अलंकारशिरोरत्नं सर्वस्वं काव्यसम्पदाम्। उपमा कविवंशस्य मातैवेति मतिर्मम ॥ - अलंकारशेखर पृ. 34 4. अलंकारचिन्तामणि, 4 / 18 5. वही, पृ. 120 6. द्रष्टव्य, अलंकारचिन्तामणि, 4128-89 7. वही, पृ. 140 Coco द्वारा - श्री जम्बूप्रसाद जैन, पटेल नगर, मुजफ्फरनगर
SR No.538054
Book TitleAnekant 2001 Book 54 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2001
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy