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अनेकान्त / 54-1
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साम्य का तथा उद्भट, मम्मट, रुय्यक, हेमचन्द्र ओर अजितसेन ने साधर्म्य शब्द का प्रयोग कर उपमा के स्वरूप का निरूपण किया। कुछ आचार्यों ने सादृश्यादि के अतिरिक्त उपमा की परिभाषा में गुणलेश या उसके पर्यायवाची शब्द का भी व्यवहार किया है तथा कुछ आचार्य उपमानोपमेय एवं अन्य अलंकारों से विभेद स्थापित रिने वाले शब्दों का भी समावेश करते हैं। उद्भट एवं रुय्यक उपमानोपमेय का प्रयोग करते हैं तो मम्मट, विद्यानाथ, अजितसेन, विश्वनाथ एवं विश्वेश्वर ने अन्य अलंकारों से भेद उपस्थित करने वाले शब्दों का सन्निवेश किया है।
आचार्य अजितसेन ने सर्वप्रथम उपमा के पूर्णा एवं लुप्ता दो भेद किये। इन दोनों भेदों के पुनः श्रौती एवं आर्थी के भेद से दो-दो भेद किये। पुन: वाक्यगा, समासगा तथा तद्वितगा के भेद से पूर्णोपमा के श्रौती एवं आर्थी दोनों भेदों के तीन-तीन भेद किये। इस प्रकार पूर्णोपमा के कुल छः भेद किये। इसी प्रकार लुप्तोपमा के कुल छः भेद किये। इसी प्रकार लुप्तोपमा के श्रौती एवं आर्थी दोनों भेदों के वाक्यगा अनुक्तधर्मा, समासगा अनुक्तधर्मा- इन दो भेदों से लुप्तोपमा श्रौती के दो भेद एवं इन दो भेदों के अतिरिक्त तद्धितगा अनुक्तधर्मा सहित लुप्तोपमा आर्थी के तीन भेद किये। लुप्तोपमा के अन्य भेद इस प्रकार हैं - कर्मणमा अनुक्तधर्मा, कर्तृणमा अनुक्तधर्मा, क्विपा अनुक्तधर्मा, कर्मक्यच् अनुक्तधर्मा, अकथित उपमान लुप्तोपमा, समासगा लुप्तोपमा, वाक्यधर्मोपमानिका समासगा, अनुक्तधर्मा इवादि सामान्यवाचक लुप्तोपमा । इसके अतिरिक्त उपमा के अन्य भेद इस प्रकार हैं-मालोपमा, धर्मोपमा, वस्तूपमा, विपर्यासोपमा, अन्योन्योपमा, नियमोपमा, अनियमोपमा, समुच्चयोपमा, अतिशयोपमा, मोहोपमा, संशयोपमा, निश्चयोपमा, श्लेषोपमा, सन्तानोपमा, निन्दोपमा, प्रशंसोपमा, आचिख्यासोपमा, विरोधोपमा, प्रतिषेधोपमा, चाटूपमा, तत्त्वाख्यानोपमा, असाधारणोपमा, अभूतोपमा, असम्भावितोपमा, विक्रियोपमा, प्रतिवस्तूपमा, तुल्ययोगोपमा एवं हेत्पमा । '
आचार्य अजितसेन के पूर्णोपमा एवं लुप्तोपमा के भेदों पर मम्मट का प्रभाव है तथा उपमा के अन्य भेदों पर अग्निपुराण एवं दण्डी का प्रभाव है।
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